Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 1
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 377
________________ "यह कि इतना सब सीखने के लिए तो सारी आयु भी पर्याप्त नहीं होगी।' "सच है, परन्तु हमारे सपाज की रचना ऐसी है कि यह सब थोड़े समय में भी सीखना आसान है क्योंकि बहुत हद तक रक्तगत होकर ज्ञान संस्कार बल से प्राप्त रहता ही है। इसी कारण इन कुशल कलाओं के लिए आनुवंशिक अधिकार प्राप्त है; शिल्पी का बेटा शिल्पी होगा, गायक का पुत्र गायक, शास्त्रवेत्ता का पुत्र शास्त्रवेत्ता और योद्धा का पुत्र योद्धा ही होगा। इसी तरह, वृत्ति-विद्या भी रक्तगत होने पर जिस आसानी से सीखी जा सकती है उस आसानी से अन्यथा नहीं सीखी जा सकती। एक कुम्हार के बेटे को शिल्पी या शिल्पी के पुत्र को योद्धा या वैद्य के बेटे को संगीतज्ञ बनाने के माने हैं उसके मस्तिष्क पर बोझ लादना, एक असफल प्रयास।" "संस्कारों से संचित ज्ञान-धन को निरर्थक नहीं होने देने, और मस्तिष्क को क्रियाशील शक्तियों का भी दुरुपयोग या अपव्यय नहीं होने देने से हमारे देश में आनुवंशिक वृत्ति विद्यमान है ! इसी कारण प्रगति करती हुई कला यहाँ नित नवीन रूप और कल्पना धारण कर विशेष परिश्रम के बिना भी आगे बढ़ी है। अब जिस तरह, राजकुमार ने राज-शासन, शस्त्र-संचालन आदि में निपुणता रक्तगत संस्कार से पायो है उसी तरह हमारे चावुण ने भी शिल्पकला में निपुणता पायो है। मेरे बचपन में पिताजी कहा करते थे कि तुम मुझसे भी अच्छा शिल्पी बनोगे। वहीं धारणा मुझे अपने लड़के चावुण के बारे में है। जन्म से उसने छेनी-हथौड़े की आवाज सुनी है, पत्थर; छेनी, हथौड़ा, मुर्ति और चित्र देखे हैं, इसीलिए रूपित करने का अवसर मिलते ही उसकी कल्पना सहज ही प्रस्फुटित होती है। परन्त आप अगर इस तरह का प्रयोग करना चाहें तो...।" बिट्टिदेव ने बीच ही में कहा, "वह असाध्य है, यह कहना चाहते हैं न आप?" "यह तो नहीं कहता कि वह असाध्य है, किन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि यह कष्टसाध्य है। कुछ लोगों को शायद असाध्य भी हो सकता है, जैसे कि हमारे चावुण को बहुत करके शस्त्रविद्या असाध्य ही होगी। सारांश यह कि विद्या आनुवंशिक हैं, परम्परा-प्राप्त है और उससे हमें एक आत्म-सन्तोष और तृप्ति प्राप्त होती है। मेरी ही बातें अधिक हो गयीं। दोनों कविश्रेष्ठ मौन ही बैठे हैं, आप उनसे विचार-विमर्श कर सकते हैं कि मेरा कथन ठीक है या नहीं।" ___ "सुखी समाज की रचना के लिए और कम परिश्रम से विद्या सीखने के लिए हमारी यह वंश-पारम्पर्य पद्धति बहत ही अच्छी है, इसीलिए हेष-रहित भावना से सभी एक-दूसरे के पूरक होकर पनप रहे हैं। परन्तु सबके अपवाद भी होते ही हैं। सुनते हैं कि सुन्दर और श्रेष्ठ काव्यरचना में सर्वश्रेष्ठ स्थान पानेवाले महाकवि पम्प के हाथ भयंकर तलवार के जौहर भी दिखाते थे।" कवि नागचन्द्र ने कहा। "हमारी यह अम्माजी भी नृत्य और शस्त्र-विद्याओं में एक साथ निपुण बन पट्टमहादवी शान्तला :: 78.

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