Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 1
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 379
________________ "बोकिमय्या ने कहा, "युवनाम संवत्सर में संक्रान्ति के दिन, इतना स्मरण चावुण ने फौरन कहा, "शालिवाहन शक नौ सौ सत्तावन के युव संवत्सर में पूस सुदी पूर्णिमा को इतवार के दिन यहाँ उमा-महेश्वर को प्रतिष्ठा हुई। "शिल्पीजी, आपके लड़के को स्मरण शक्ति बहुत अच्छी है।" कहते हुए कवि नागचन्द्र ने चावुण की पीठ थपथपाकर कहा, "अपने वंश की कीर्ति बढ़ाओ, बेटा।" "उसके दादा ने जिन मन्दिरों का निर्माण किया है, उन सबकी पूरी जानकारी उसे है। सदा वह उसी ध्यान में मगन रहता है। चलिए।" उन्होंने मन्दिर की परिक्रमा में प्रवेश किया। उनके पीछे सब और सबके पीछे चावुण चल रहा था। शायद उसे संकोच हो रहा था जिसे बिट्टिदेव ने भापकर अपने गुरु के कान में कुछ कहा। कवि नागचन्द्र रुके और बोले,"चावुण, साथ-साथ चलो, यों संकोचवश पीछे मत रहो।" टोली परिक्रमा कर गर्भगृह की ओर सुखनासी के पास खड़ी हुई। अर्चना हुई। सब मुखमण्डप में बैठे। रेविमय्या सामने के स्तम्भ से सटकर खड़ा हो गया। कवि नागचन्द्र ने अपनी बगल में बैठे चावुण से पूछा, "यह सपरिवार उमामहेश्वर की मूर्ति गढ़नेवाले शिल्पी कौन थे?" "हमारे पिताजी बताते हैं कि गढ़नेवाले मेरे दादा हैं।" चानुण ने कहा। विद्रिदेव ने कहा, "मैं समझता था कि यहाँ लिंग की प्रतिष्ठा की गयी है।" "वह है न। नीलकण्ठेश्वर मन्दिर में केवल लिंग ही है जो हरे पत्थर का बना है। शायद हमारे देश में यही एक हरे पत्थर का बना लिंग है। ऐसा अन्यत्र कहीं नहीं, केवल यहीं है, ऐसा लगता है।" दासोज ने बताया। "तब तो यह आश्चर्य भी है, और खास विशेषता भी है। क्योंकि जहाँ तक मैं जानता हूँ समूचे भारतवर्ष में लिंग काले पत्थर या संगमरमर से या स्फटिक शिला से ही बने हैं।" कवि नागचन्द्र ने कहा। "हमारा बलिपुर अन्य बातों में भी अपनी ही विशेषता रखता है। यहाँ हरे पत्थर का शिवलिंग तो है ही, यहाँ गण्ड-भेरुण्ड का देह-मानव भी है। इसके अलावा उमामहेश्वर में भी एक वैशिष्ट्य है।' दासोज ने कहा। "क्या वैशिष्ट्य है ?' नागचन्द्र ने पूछा। "राजकुमार को कोई विशेषता दिखायी दो?" दासोज ने पूछा। "हाँ, कुछ विशेषता तो अवश्य है। आपसे सावधानी से पूछकर जानना चाहता था, यथावकाश । बैठे हुए महेश्वर की यह मूर्ति राज-लालित्ययुक्त है। उनकी बायीं जंघा पर उमा आसीन है । इतना ही नहीं, यहाँ महेश्वर का सारा परिवार दिखाया गया। पट्टमहादेवा शान्तना : 15

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