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में हकल, मौका मिलते ही अपनी लडकी के पोलमाल में कोरे राजा को फंसाकर अपने वश में कर लेने के लिए ही यह षड्यन्त्र नहीं है? उस घातुकी हेग्गड़ती की यह जालसाजी हम नहीं समझते, क्या हम इतने मूर्ख हैं?"
"रथोत्सव के मौके पर युवराज का भी जाने का विचार था, परन्तु युद्ध के कारण वे न जा सके। इसलिए युवरानी वगैरह को ही भेजने की व्यवस्था की गयी लगता है।"
__ "यह सब ढकोसला है, मैं जानती हूँ। हमारा राजघराना हमारे ही जैसा शुद्ध जैन घराना है, उसकी तरह संकर नहीं । उस विभूतिधारी शैव से विवाह करने के बाद उसका जैन धर्म भी वैसा ही होगा।"
"वह तो उनका व्यक्तिगत मामला है, इससे तुम्हारा क्या नुकसान हुआ?"
"मेरा कोई नुकसान नहीं, परन्तु बात स्पष्ट है । आप ही बताइए, राजघराना जैन है, भगवती तारा के उत्सव से उसका क्या सम्बन्ध? आप विश्वास करें या न करें, यह जालसाजी हैं निश्चित । उस हेगड़ती ने कुछ माया-मन्त्र करके युवरानी और युवराज को अपने जाल में फंसाकर वश में कर लिया है। आप महाराज से कहकर राजकुमार को युद्ध क्षेत्र से तुरन्त वापस बुलवा लीजिए, युवरानी को बलिपुर से लौटा लाने की व्यवस्था कराइए। आप ऐसा नहीं करेंगे तो हमारी पद्मला अपने को किसी कुएँ या पोखो के हवाले कर देगी।"
"कुछ भी समझ में नहीं आता। तुम्हारी बात को भी इनकार नहीं कर सकता, किस बाँबी में कैसा साँप है, कौन जाने । अब तो तुम्हारे भाई से विचार-विनिमय करने के बाद ही देखूगा कि इस हालत में क्या किया जा सकता है।"
"चाहें तो मैं स्वयं जाकर भैया से कहूँ?"
"तुम चुप बैठी रही। ऐसी बातों में तुम सीधी कोई कार्रवाई न करो। उस हंग्गड़ती ने जो मन्त्र-तन्त्र किया उसी का प्रतिकार करने को तुम उस मन्त्रवादी वामशक्ति के यहाँ गयी थीं न?" ।
"गयी थी तो इसमें गलती क्या हुई?"
"स्त्रियों में विषय की पूरी जानकारी तो रहती नहीं। जो तुम करने जाओ उसका उल्टा असर तुम पर हो जाए तो? इसमें मन्त्र-तन्त्र करानेवाले और उसका विरोध करनेवाले दोनों की इच्छाओं से अधिक इन वामाचारियों की कुप्रवृत्तियों प्रेरक शक्ति धनकर प्रतिक्रियाएं बढ़ाने लगती हैं। इसलिए हमें कभी इनको प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए।"
"पण्डित ने तो यही कहा था कि उनका जादू उन्हीं पर फेर ,गा। लेकिन मैंने ही कुछ दूर की बात सोचकर कहा, वह सब मत करो, हमारी रक्षा हो, इतना मात्र पर्याप्त है। ऐसा ही रक्षायन्त्र तैयार कर देने को कह आयी हूं।"
"मगर वह डींग हाँकता फिरेगा. पता नहीं क्या बकता फिरेगा, तब क्या तुम
359:. पपहादत्री गान्तला