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हमारे कामकाज में वे हस्तक्षेप नहीं करते। हम भी अपनी तरफ से, जो गौरव उनको समर्पित करना चाहिए, समर्पित करते आये हैं। पोय्सलों और चालुक्यों में आपस में सौहार्द और विश्वास चला आया है। यह जानकारी भी आप गुरुजनों को होनी चाहिए कि यह प्रदेश फिलहाल पोयसल राज्य की पश्चिमोत्तर सीमा है। नाम मात्र के लिए यह धनवासी प्रान्त की राजधानी है। वास्तव में वनवासी के माण्डलिक का बलिपुर पर कोई अधिकार नहीं 1 अब वनवासी महाप्रधान दण्डनायक पद्यनाभय्या की देख-रेख में है, शायद यह आप लोगों को मालम है। फिर भी, ते यहाँ कभी नहीं आये, तब भी नहीं जब सम्राज्ञीजी यहाँ पधारी थीं; इसका कारण यही है कि बलिपुर अब उनके हाथ में नहीं, पोयसलों के अधिकार में है।"
"सन्निधान को इन सब बातों की भी जानकारी हो सकती है, हमें पता न था।" हेग्गड़े मारसिंगय्या ने कहा।
"आपके प्रभु मुझे सब बातें बताते हैं। मुझपर उनका जो विश्वास है उसके प्रति मैं उन्हें कुछ भी नहीं अर्पित कर सकी। ऐसे प्रभु से मेरा पाणिग्रहण हुआ है, यही मेरे लिए अहोभाग्य है।"
हेग्गड़ती माचिकब्बे कुछ कहना चाह रही थी कि रावत मायण तुरन्त बोल पड़ा, "यदि सभी स्त्रियाँ ऐसी हो तो पुरुष भी इसी तरह विश्वास रख सकेंगे।" उसके मुख पर मानसिक दुःख भर आया था।
मारसिंगय्या ने पूछा, "क्यों मायण, तुमने स्त्री पर विश्वास रखकर धोखा खाया है?"
"वह अपवित्र विषय इस पवित्र स्थान में नहीं उठाना चाहता, इतना जरूर कहूँगा कि जो हुआ सो अच्छा ही हुआ। दूसरे किसी तरह के मोह में न पड़कर राष्ट्र के लिए सम्पूर्ण जीवन को धरोहर बनने में उससे सहायता ही मिली।"
"बहुत दुःखी मन से बात निकल रही है। इस सृष्टि में अपवाद की भी गुंजाइश है। हमने तो केवल ऐसी स्त्री की बात की है जो सर्वस्व त्याग करने को तैयार हो और करुणा का अवतार।" युबरानी एचलदेवी ने उसे सान्त्वना दी।
"लेकिन वह तो मानवी ही नहीं मानी जा सकती, उसे स्त्री मानने का तो सवाल ही नहीं उठता। वह तो एक जानवर है।" मायण का दर्द अब क्रोध का रूप धारण कर रहा था।
"शायद ऐसा हो हो यद्यपि सन्निधान ने आदर्श स्त्री की बात की है, है न, मायण?" मारसिंगय्या ने उसे शान्त किया।
"मुझे क्षमा करें। भूलने का जितना भी प्रयत्न करूँ, वह याद आ ही जाती है। वह पीछे पड़ी साढ़ेसाती लगती है।"
"उस साढ़ेसाती का पूरा किस्सा समग्र रूप से एक बार कह दीजिए, रावतजो,
358 :: एट्टमहादेवी शान्तला