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वांछित आभूषण प्राप्त हो जाए तो स्त्रियाँ सहज ही बहुत खुश होती हैं। फिर अचानक हीरे-जड़े चौकोर बड़े पदक से जड़ी सोने की माला वक्षःस्थल को सुशोभित करे तो किसकी छाती आनन्द से फूलेगी नहा? इस पदक-पेटी के अन्दर सर्वतोभद्र यन्त्र था, यह उसकी तीनों लड़कियों को मालूम होता तो वे क्या करतीं सो कह नहीं सकते। माँ इस निष्कर्ष पर पहुंची कि उसकी मासूम बच्चियाँ ऐसे पेचीदा मामलों में नहीं पड़ें क्योंकि न तो वे ये बातें गुप्त रख सकेंगी और न वे अपने हिताहित के बारे में स्वयं सोच-समझ ही सकती हैं। अपने इस निष्कर्ष की सूचना उसने मरियाने को दी तो उन्होंने भी उसे सही मान लिया।
वामशक्ति पण्डित का मुँह बन्द करने के लिए उसके पुरस्कार का परिमाण बढ़ गया था, यद्यपि उसने सोच रखा था कि किसी-न-किसी तरह दण्डनायिका के इस रहस्य का पता लगे तो वह मेरे वश में होकर जैसा नचाऊँ वैसा नाचने लगेगी; चाहे जैसा हो, उस रहस्य का पता लगाकर ही रहूंगा। ___पद्मला, चापला और बोप्पि तीनों आईने में अपने-अपने कण्ठहार और पदक को सुन्दरता देख बड़ी खुश थीं । चामब्वे अपना पदक छुप-छुपे आँखों से लगाती और उसे छाती में दबाकर खुशी मान लेती । यह सब तो ठीक है। परन्तु उसे इस बात की चिन्ता थी कि उसके पतिदेव ने एक अक्षर भी इनकी प्रशंसा में नहीं कहा। बोप्पि ने हार सामने धरकर पूछा, "अप्पाजी, यह सुन्दर है न?" तो वे केवल 'हाँ' कहकर अपने कमरे की ओर चल दिये।
चामळ्वे हार और पदक प्रदर्शित करने पति के कमरे में जा रही थी कि अन्दर के प्रकोष्ठ में बैठी खिन्न घोप्पि को देखकर उसकी ठुड्डी पकड़कर प्यार करती हुई बोली, "क्या हुआ बेटी?"
बच्ची ने गले से हार निकालकर कहा, "माँ, यह मुझे नहीं चाहिए, लगता है यह पिता को पसन्द नहीं।"
"ऐसा कहा है उन्होंने?"
"मुझसे कहा तो कुछ नहीं, आप ही पूछ लें। वे कहें कि अच्छा है तभी पहनूंगी मैं इसे।"
"उन्हें क्या मालूम? मैं कहती हूँ वह तुम्हारे गले में सुन्दर लगता है।"
"पिताजी भी यही कहें, तभी मैं पहनूंगी।" कहकर वह कण्ठहार फेंकने को तैयार हो गयी।
चामव्वे ने उसे उठाया, "बेटी, इसे ऐसे फेंकना नहीं चाहिए। इसे जरीन पर फेंकने से भगवान् गुस्सा करेंगे। इसे पहनो । अभी तुम्हारे पिताजी को बुलाकर उनसे कहलाऊँगी कि यह सुन्दर है।"
बोप्पि ने कहा, "हाँ", तब चामञ्चे ने हार फिर पहनाकर उसे छाती से लगा
3(it) :: पट्टमहादेवी शानना