________________
होगी। बात का पता न लगने पर भी उसने निश्चित रूप से यह समझ लिया था कि इस सबको जड़ मुझपर दोषारोपण करना है। परन्तु मुझपर ऐसा आरोप करनेवाले भी कौन होंगे यहाँ, मैंने ऐसा क्या काम किया है? भाई, पति या स्वयं महाराज ही मुझ पर कोई दोषारोपण करें, ऐसा कोई काम मैंने नहीं किया है। जब मेरा मन इतना दृढ़ है तो मुझे किसी से डरना भी क्यों चाहिए। मैं सवर पतिदेव को यह आश्वासन देकर कि बच्चों की कसम खाकर सत्य बोलूँगा, उनके मन की बात जानकर हो रहूंगी। पता नहीं, उसकी आँख कब लग गयी ।
सुबह वह बड़ी देर से जगी । तब तक मरियाने दो बार पूछ चुके थे कि वह जगी है या नहीं। उसे उठकर गुसलखाने की ओर जाते समय ही इस बात का पता लग गया था | प्रातः कालीन कार्य जल्दी ही समाप्त कर वह पतिदेव के दर्शन को चल पड़ी। च्चियाँ संगीत का अभ्यास करने बैठ गयी थीं इससे पति-पत्नी को बातों के बीच उनको उपस्थिति की उसे चिन्ता नहीं रही। कोई मिलने आए भी तो समय नहीं देने का दडिग को आदेश देकर वह पति के कमरे में पहुँची जो उसकी प्रतीक्षा में बैठा
था।
"सुना है कि मालिक ने दो बार याद किया। आपको कहीं जाना था ? मुझसे देर हुई, क्षमाप्रार्थी हूँ ।"
वह जोर से हँस पड़ा ।
" हँसे क्यों ?"
"तुम्हें यह भी नहीं दिखा कि मैं बाहर जाने की वेश-भूषा में हूँ या नहीं, इसलिए हंसी आ गयी।"
"मेरा ध्यान उधर गया ही नहीं। जब यह सुना कि आपने दो बार दर्यापत किया तो मेरा ध्यान उधर ही लगा रहा । "
"ठीक है, अब तो इधर-उधर ध्यान नहीं होगा न बैटो, बच्चियाँ क्या कर रही
हैं ?"
"संगीत- - पाठ में लगी हैं।"
अच्छा हुआ। आज तुम्हें दुपहर की अपने भाई के घर जाना होगा।" "सो क्यों ?"
LI
।।
'जो बात मुझसे कहने में आनाकानी कर रही थीं वह तुम अपने भाई से कह सकती हो। इस बात का निर्णय हां ही जाना चाहिए।"
11
'रात को ही निर्णय कर सकते थे, आपने ही नहीं कहा, इसीलिए मैं चुप रही, बताने से मैंने कहाँ इनकार किया था ?"
"हम तो लड़ाकू लोग हैं। हमें सवालों का उत्तर तत्र का तत्र देना चाहिए । युद्ध भूमि में गुजरने वाला एक क्षण भी विजय को पराजय में बदल सकता है । इसलिए
-
पट्टमहादेवी शतल : १८५