Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 1
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 366
________________ था । उसे अचानक देखकर वह चकित हुआ, " कहला भेजती तो मैं खुद ही आ जाता। आपने यहाँ तक आने का कष्ट ही क्यों किया। पधारिए विराजिए। " बैटी तो भी सामने एक आसन पर बैठा "कोई खास बात थी, दण्डनायिकाजी ?" "वही, यन्त्र के बारे में बात करने आयी हूँ ।" L 'क्यों, क्या हुआ, सब सुरक्षित हैं न?" " हैं। कल वे पहने भी जा चुके हैं। फिर भी कल और आज के दिन कोई ठीक से नहीं गुजरे। कहीं यह यन्त्र का ही कुप्रभाव न हो, यही पूछने आयी हूँ ।" "न, न, ऐसा हो ही नहीं सकता। यदि दण्डनायिकाजी यह बताने की कृपा करें कि क्या हुआ तो यह बताने में सुविधा रहेगी कि वह क्यों हुआ। " "यही हुआ, ऐसा ही हुआ, यह तो निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकती । परन्तु ऐसा लग रहा है कि मानसिक शान्ति भंग हो गयी है। आपने तो कहा था कि इससे वास्तव में धैर्य, सन्तोष श्रेय और उन्नति प्राप्त होगी। परन्तु... " " दण्डनायिकाजी, आपको मुझपर विश्वास रखना चाहिए। निःसंकोच बिना छिपाये बात स्पष्ट कह दें तो मुझे आपकी मदद करने में सुविधा होगी।" "विश्वास रखकर ही तो ये यन्त्र बनवाये है।" "सो तो ठीक है। परन्तु दण्डनायिकाजी अपने विरोधियों के नाम बताने में आगा-पीछा कर रही हैं तो इसका भी कोई कारण होना चाहिए। मान लीजिए कि वे लोग मान्त्रिक अंजन के बल से यह जान गये हों कि आपने मुझसे ऐसा यन्त्र बनवाया है और उन्होंने उसके विरोध में कुछ करवाया भी हो तो ?" " 'क्या कहा, मान्त्रिक अंजन लगाकर देखने से कहीं दूर रहनेवालों को यहाँ जो हो रहा है उसका पता लग सकता है ?" "हाँ, 'मानो आँखों के सामने ही गुजर रहा हो ।” L " तो मैं भी यह देख सकूँगी कि वे लोग क्या कर रहे हैं ?" " कई एक बार अप्रिय बात भी दृष्टिगोचर होती है, इसलिए आपका न देखना ही अच्छा हैं। चाहें तो आपकी तरफ से मैं ही देखकर बता दूँगा।" " मालिक से परामर्श कर निर्णय बताऊँगी कि आपको देखकर बताना होगा या मैं ही देखूं । अब मेरे एक सवाल का उत्तर देंगे ?" " हुक्म हो।" " समझ लीजिए, जैसा कि आप सोचते भी हैं, उन लोगों ने मान्त्रिक अंजन लगाकर देख लिया है और हमारे सर्वतोभद्र यन्त्र के विरोध में कुछ किया है। उस हालत में आपके इस यन्त्र का क्या महत्त्व रह गया ?" " दिग्बन्धन करके यह इस तरह तैयार किया गया है कि इस पर कोई बुरा प्रभाव 172 पट्टमहादेवी शान्तला

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