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भी नहीं पड़ सकता। विरोधियों के प्रयत्नों के कारण शुरू-शुरू में कुछ कष्ट का अनुभव तो होगा ही। परन्तु विरोध को पराजित होकर ही रहना पड़ेगा। तभी आप समझेंगी इस यन्त्र की ताकत को सचाई।"
"तो मतलब यह कि किसी तरह के भय का कोई प्रश्न नहीं?" "किसी तरह के भय का कोई प्रश्न नहीं, दण्डनायिकाजी।" "आपने बताया विरोध पराजित होकर हटेगा, इसका पता हमें कैसे लगेगा?"
"जैसे अभी प्रभाव के होने का अनुभव कर रही हैं, वैसे ही प्रभाव के हट जाने का भी अनुभव होगा। तब जो कष्ट या अशान्ति का अनुभव अब कर रही हैं, वह न रहकर मानसिक शान्ति का अनुभव होगा।"
"तो जो भी दर यन्त्र को धारण करेंगे ना मात्र पर एक ही तार का प्रभाव दिखेगा
"सब पर एक ही व्यक्ति के द्वारा एक ही तरह का मन्त्र-तन्त्र चला हो तो सबको एक ही तरह की शान्ति आदि का अनुभव होगा। परन्तु विरोधी शक्ति का प्रयोग सब पर नहीं किया गया हो तो एक ही तरह की अनुभूति कैसे हो सकती है?"
___ "अभी आपने बताया कि विरोध का प्रभाव शुरू-शुरू में होगा ही। वह कितने दिन तक ऐसा रहेगा।"
"इसका निश्चित उत्तर देना क्लिष्ट है, क्योंकि यह विरोध करनेवाले की शक्ति पर निर्भर है।"
"आपने कहा कि वह विरोधी शक्ति अपनेआप हट जाएगी हारकर। मान लें कि विरोधी शक्ति बहुत प्रबल है तब उसे पीछे हटने में कितना समय लग सकता है?"
__ "हम कुछ भी न करें तो दो या तीन पखवारे लगेंगे। लेकिन आप चाहें तो उसका पता लगाकर दो ही दिन में दबा सकता हूँ। अगर आप ही बता दें कि किस पर आपकी शंका है तो एक ही दिन में उस विरोधी शक्ति को हटा सकता हूँ।"
उसने फौरन कुछ नहीं कहा, सोचती बैठी रहो। वामशक्ति उसका अन्तरंग समझने के इरादे से अपने ही ढंग से घूम-फिरकर इस नुक्कड़ पर पहुँचा। दण्डनायिका के मुँह से अन्तरंग की बात निकलवाने का समय आ गया। एक-दो क्षण उसने प्रतीक्षा की। फिर बोला, "भयभीत होने का कोई कारण नहीं, जैसे वैध से रोग नहीं छिपाना चाहिए वैसे ही ज्योतिषी से अपनी नियति भी नहीं छिपानी चाहिए।"
"पण्डितजी, आपसे कुछ छिपाना मेरा उद्देश्य नहीं। परन्तु मैं मालिक की आज्ञा नहीं राल सकती, वे मान लेंगे तो फौरन कह दूँगो। वे मान ही लेंगे। तब आपके अंजन के प्रभाव से हम सब उन विरोध करनेवालों को भी देख सकेंगे। मुझमें यह कुतूहल पैदा हो गया है कि इस अंजन का प्रयोग कैसे करते हैं और उससे कहीं घट रही घटना
पट्टमहादेवी शान्तला :: 373