Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 1
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 349
________________ यही वह चाहती है। मैंने शान्तला से बचन लिया, इसमें मेरा उद्देश्य केवल यही था कि परिवार के लोगों में परस्पर प्रेम-भावना हो। हेग्गड़े के घराने को हम और हमारे प्रभुजी अपने परिवार से अलग नहीं मानते, इसलिए यह बात यहीं समाप्त कर दें। यही कहने के लिए इतनी उतावली होकर आयी हो? अम्माजी ने कुछ कहकर आपको आतंकित तो नहीं किया?" "न, न, ऐसा कुछ नहीं। वास्तव में अम्माजी बहुत खुश हैं, कहती हैं, युवरानी जी, मुझ-जैसी छोटी बच्ची से इतना बड़ा वादा करा लें और वह वचन दे, इससे बड़ा भाग्य और क्या हो सकता है। परन्तु उसने एक और बात की, उसी बात से दर्शन लेने मुझे जल्दी आना पड़ा।" "ऐसी क्या बात है?" "यह वादा आपने राजकुमार के जन्म-दिन के शुभ अवसर पर भेंट-रूप में करने को कहा। इसी से विदित हुआ कि आज राजकुमार का जन्मोत्सव है । यदि पहले जानकारी होती तो वर्धन्ती का उत्सव धूमधाम से मनाने की व्यवस्था की जा सकती थी। समस्त ग्रामीणों को इस आनन्दोत्सव में भाग लेने का मौका मिल सकता था। अभी भी वक्त है। राजकुमार तथा राज-परिवार के कुशल-क्षेम के लिए आज सन्ध्या समय मन्दिरों, वसतियों, विहारों आदि में पूजा-अर्चा की व्यवस्था तो हेगड़ेजी करेंगे ही. ' प्रीति-भोज की व्यवस्था भी कर ली जाए। सन्निधान की आज्ञा लेने ही चली आयी "हेगड़तीजी, आपके इस प्रेम के हम कृतज्ञ हैं। मन्दिरों, विहारों और वसतियों, में पूजा-अर्चा की व्यवस्था करना तो ठीक है, राज-परिवार के हित-चिन्तन के लिए और प्रभु विजयी होकर कुशलपूर्वक राजधानी लौटें, इसके लिए विशेष पूजा आदि की व्यवस्था भी ठीक है, उसमें हम सभी सम्मिलित होंगे। अब रही शाम को प्रीति-भोज की बात। यह नहीं होना चाहिए । जब प्रभु प्राणों का मोह छोड़कर रण-क्षेत्र में देशरक्षा के लिए युद्ध कर रहे हों तब यहाँ हम धूमधाम से आनन्द मनाएँ, यह उचित नहीं लगता, हेग्गड़तीजी। वर्धन्ती का यह उत्सव घर तक ही सीमित होकर चले, इतना ही पर्याप्त है। आप दोनों, आपकी अम्माजी, आपके भाई और उसकी पत्नी और गुरुओं के भोजन की व्यवस्था कल यहाँ होगी ही। ठीक है न?" "जैसी आज्ञा, आपका कहना भी ठीक है। ऐसे मौके पर आडम्बर उचित नहीं। आज्ञा हो तो चलूँ। नाम की पूजा-अर्चा की व्यवस्था के लिए मालिक से कहूँगी।" युवरानी ने नौकरानी बोम्मले को आदेश दिया, "हल्दी, रोली, आदि मंगलद्रव्य लाओ।" वह परात में मंगल-द्रव्यों के साथ फल-पान-सुपारी, रोली वगैरह ले आयी। परात बोम्मला के हाथ से लेकर हेग्गड़ती को युवरानो ने स्वयं दी और कहा, "आप पट्टमहादेवी शान्तला :: 155

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