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पण्डित के यहाँ पैदल ही गयी। उसने आँचल से सिर ढंक लिया था, फिर उन्होंने साड़ी पहचान ली थी। उसे इस बात की जानकारी नहीं थी। अन्दर आयी ही थी कि उन्होंने पूछ लिया, "आप उस मन्त्रवादी वामशक्ति पण्डित के घर पधारी थी, क्या बात है?"
वह सीधा सवाल सुनते ही सन्न रह गयी, "आप आँख मूंदकर बैठे रहें, मैं तो नहीं बैठी रह सकती 1 कन्याओं को जन्म देनेवाली माँ को क्या-क्या चिन्ताएँ होती हैं यह समझते होते तो आप ऐसे कैसे बैठे रहते।"
"बात कहीं से भी शुरू करो, यहीं लाकर जोड़ती हो। अभी कोई नयी अड़चन पैदा हो गयी है क्या? तुम्हारे भाई ने भी कहा है, प्रतीक्षा करनी होगी। तुम्हें यदि महाराज की सास हो बनना हो तो प्रतीक्षा करनी ही होगी। अन्यत्र अच्छा वर खोजने को कहो तो वह देखू : पनि नुम माँ-मोटी ते एक र पपड़े डीलो, मैं क्या करूँ?"
"और कुछ न कीजिए, युद्ध-क्षेत्र से राजकुमार को वापस बुलवा लीजिए। आपकी उम्र ही ऐसी है, आप सदिया गये हैं 1 षड्यन्त्र, जालसाजी, आप समझते ही नहीं। लेकिन इस जालसाजो की जड़ का पता मैंने लगा लिया है। इसीलिए कहती हूँ कि राजकुमार को युद्ध-क्षेत्र से वापस बुलवा लीजिए 1 बुलवाएँगे?"
"यह कैसे सम्भव है, जब स्वयं युवराज ही साथ ले गये हैं?"
"तो आपको भी यही अभिलाषा है कि वह बीर-स्वर्ग पाएँ, हमारे विद्वेषियो ने अपने रास्ते का काँटा हटाने के लिए यह जालसाजी की है, बेचारे युवराज का या राजकुमार को यह सब नहीं सूझा होगा। आपसे मैंने कभी लुका-छिपी नहीं की लेकिन ग्रह बात मुझे अन्दर-ही- अन्दर सालती है सो आज जो कुछ मेरे मन में है उसे स्पष्ट कहे देती हूँ, फिर आप चाहे जैसा करें। कह दूँ?" बड़ी गरम होकर उसने कहा।
"तो क्या तुम कहती हो कि युवराज अपने बेटे की मृत्यु चाहते हैं ?" __"शान्तं पापम् । शान्त पापम्। कहीं ऐसा हो सकता है। उनके मन में ऐसी इच्छा की कल्पना करनेवाले की जीभ में कीड़े पड़ें। परन्तु राजकुमार की मृत्यु चाहनेवाले लोग भी इस दुनिया में हैं। ऐसे ही लोगों ने उकसाकर युवराज और राजकुमार को युद्धक्षेत्र में भेज दिया है। यह सब उन्हों के वशीकरण का परिणाम है। युवराज को इस बात का पता नहीं कि वे जो कर रहे हैं वह उनके ही वंश के लिए घातक है, वशीकरण के प्रभाव से उन्हें यह मालूम नहीं पड़ सका है। उस राजवंश का ही नमक खाकर भी आप चुप बैठे रहें तो क्या होगा?"
"तुम्हारी बात ही मेरी समझ में नहीं आती। तुम्हारा दिमाग बहुत बड़ा है। दुनिया में जो बात है ही नहीं वह तुम्हारे दिमाग में उपजी है, ऐसा लगता है। राजकुमार की मृत्यु से किस क्या लाभ होगा?"
"क्या लाभ? सब कुछ लाभ होगा, उसे, वह है न, परम-घातकी हेग्गड़ती
14 :. पहातादेवी पन्तला