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प्रति तुम्हारा गौरवपूर्ण व्यवहार रहे। कल मैं और प्रभुजी नहीं रहें तब भी इस राजपरिवार और हेग्गड़े - परिवार के बीच इसी तरह का प्रेम सम्बन्ध और परस्पर विश्वास बना रहना चाहिए। तुम्हारा बड़ा भाई इनपर हम जैसा विश्वास रखता हैं, इसमें मुझे शंका हैं, इसलिए तुम्हें विशेष रूप से जागरूक रहना होगा। अब लो बीड़ा । "
"माँ, मुझे सब बातें मालूम हैं। आपसे बढ़कर रेविमय्या ने मुझे सब बताया है। मैं आपको वचन देता हूँ, माँ, आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूँगा। आपकी आज्ञा के पालन में बड़ा त्याग करने को भी तैयार हूँ" उसने बीड़ा लिया और मुँह में रख लिया।
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"बेटा, अब मैं निश्चिन्त हूँ। उदय से वह वर्णन सुनकर मैं भयग्रस्त हो गयी थी। मेरी सदा यही इच्छा रहेगी कि तुम दोनों में कभी भी स्पर्धा की भावना न आए। मेरी इस इच्छा की पूर्ति की आज यह नान्दी है। लड़कों को विवाह के पहले इस तरह पान नहीं दिया जाता, फिर भी, आज जो मैंने दिया उसे मैं अपचार नहीं मानती। इसलिए उदय से भी यही बात कहकर उसे भी यह बीड़ा देती हूँ।" युवरानी ने उसे भी बोड़ा दिया और स्वयं ने भी पान खाया। फिर आँखें मूंदकर हाथ जोड़े। भगवान से विनती की, " अर्हन्, इन बच्चों को एक मन होकर सुखी रहने का आशीर्वाद देकर अनुग्रह करो। "
दण्डनायिका चामव्वा के कानों में दोनों समाचार पड़ते देर न लगी और दोनों ने ही उसके मन में किरकिरी पैदा कर दी। उसे तो यह मालूम हो था कि उसका भावी दामाद कितना दृढ़ांग है, ऐसे दुर्बल व्यक्ति को युद्ध क्षेत्र में क्यों ले जाना चाहिए, इसका जो उत्तर उसे सूझा वह अपने पतिदेव से कहने को समय की प्रतीक्षा कर रही थी। राजघरानेवाले जाकर एक साधारण हेगड़े के घर रहें, यह अगर महाराज जानते होते तो वे शायद स्वीकृति नहीं देते।
उसने यह निश्चय कर लिया है कि मुझसे बदला लेने को हेग्गड़ती ने षड्यन्त्र रचा है, अपने स्वार्थ की साधना के लिए उसने यह सब किया है। उसे कार्यान्वित करने के लिए उपनयन के दिन का पता लगाकर उसने उस भस्मधारी को यहाँ भेजा जिसने वामाचारियों के द्वारा अभिमन्त्रित भस्म लाकर यहाँ फूँक मारी। बड़े राजकुमार पद्यला से प्रेम करते हैं, यह बात जानकर ही उसने ऐसी बुरी तरकीब सोच रखी । इसकी दवा करनी ही चाहिए। अब आइन्दा दया और संकोच छोड़कर निर्दयता से व्यवहार न करें तो हम मिट्टी में मिल जाएँगे। कौन ज्यादा होशियार है, उसे दिखा न दूँ तां मैं
२३० :: पट्टमहादेवा शान्तला