________________
दिया, माँ।"
"नहीं, पामा ने ऐसा निर्णय तो नहीं दिया।" श्रीमी आवाज में शान्तला बोली।
"तुम्हारे मामा बोले या नहीं। मेरे पैर काँपते थे, इस कारण उन्होंने स्पर्धा रोक दी। आश्चर्य है कि तुम्हारे कोमल पैरों में मुझ जैसे एक योद्धा के पैरों से भी अधिक दृढता कैसे आयो? माँ, आपको शान्तला का हस्त-कौशल देखना चाहिए जो उसकी नृत्य-वैखरी से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।" बिट्टिदेव ने कहा।
"अब भाट कौन है, भैया।" उदय ने ताना मारा।
युवसनी एचलदेवी ने सोचा कि आज कोई मजेदार बात हुई होगी, इसलिए उन्होंने भी सवाल विग "तो भी, या हुआ।"
चिट्टिदेव के बोलने से पूर्व ही उदय बोल पड़ा, "माँ, मैं कहूँगा। ये दोनों अपनी-अपनी बात रंग चढ़ाकर सुनाएँगे। मैंने स्पर्धा में भाग नहीं लिया, बल्कि मैं प्रेक्षक बनकर देखता रहा, इसलिए जो कुछ हुआ उसका हू-ब-हू विवरण मैं दूंगा।".
मुझ-जैसा ही वह भी शान्तला के हस्त-कौशल की सराहना करता है, इसके अलावा मेरे मुँह से प्रशंसा की बात होगी तो उसका दूसरा ही अर्थ लगाया जा सकता है. यह सोचकर बिट्टिदेव ने उदय से कहा, "अच्छा, तुम ही बताओ।"
बातें चल रही थी, साथ-साथ भोजन भी चल रहा था। सब कुछ कह चुकने के बाद उदय ने कहा, "कुछ और क्षण स्पर्धा चली होती तो सचमुच शान्तला की तलवार की चोर से भैया घायल जरूर होते । स्थिति को पहचानकर गुरु सिंगिमय्याजी ने बहुत होशियारी से स्पर्धा रोककर उन्हें बचा लिया।"
युवरानी एचलदेवी ने बिट्टिदेव और शान्तला की ओर देखा। उनकी आँखें भर आयी थीं। ___ "क्या हुआ, माँ, हिचकी लगी?' बिट्टिदेव ने पूछा।
"नहीं, बेटा, आप लोगों के हस्त-कौशल की बात सुनकर आनन्द हुआ। साथ ही जो स्पर्धा को भावना तुम लोगों में हुई वह तुम लोगों में द्वेष का कारण नहीं बनी, इस बात का सन्तोष भी हुआ।" फिर शान्तला से बोली, "अम्माजी, आज हमारे छोटे अप्पाजी का जन्म-दिन है। उन्हें तुम कुछ भेंट दोगी न?"
"यहाँ आने से पहले यदि मालूम हुआ होता तो मैं आते वक्त साथ ही ले आती, युवरानीजी।"
"तुम कुछ भी लाती, यह बहुत समय तक नहीं टिकती। परन्तु अब जो भेंट तुमस माँग रही हूँ वह स्थायी होगी। दोगी न?" युवरानी ने कहा।
"जो आज्ञा, बताइए क्या ई?"
"भोजन के बाद आराम-घर में बताऊँगी।" युवरानी बोली। विट्टिदेव और शान्तला के मनों में युवरानीजी की इस मांग के बारे में पता नहीं क्या क्या विचार
11 :: :
शान्तला