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कोशिश मत करो। तुम्हारी यह बात भी दृष्टि में रखकर प्रस्तुत विषय पर विचार करूँगा, डाकरस से वस्तुस्थिति जानने को गुप्तचर भेजूँगा । तब तक तुम्हें मुँह बन्द रखकर चुप रहना होगा। समझ ?"
"यह ठीक है। वैसे मुझे मालूम ही है कि वहाँ से क्या खबर मिलेगी। कमसे-कम तब आप मेरी बात की सचाई समझेंगे। लगता है, आजकल आप भी मुझे शंका की दृष्टि से देख रहे हैं, पहले जैसे मेरी बात सुनते ही मानते नहीं ।"
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"सो तो सच है, मगर वह शक के कारण नहीं, तुम्हारी जल्दबाजी के कारण है। जल्दबाजी में मनमाने कुछ कर बैठती हो और वह कुछ का कुछ हो जाता हैं । इसलिए तुमसे कुछ सावधानी से बरतना पड़ता है । अब यह बहस बन्द करो । युद्धक्षेत्र से वस्तुस्थिति जब तक न मिले तब तक तुम्हें मुँह बन्द रखना होगा। तुम्हें अपनी सारी आलोचनाएँ रोक रखनी होंगी।"
"जो आज्ञा ।" उसने पतिदेव से अपनी अक्लमन्दी की प्रशंसा की प्रतीक्षा की थी । उसकी आशा पर पानी फिर गया। इसलिए असन्तुष्ट होकर वह वहाँ से चली गयी। जाते-जाते उसने निश्चय किया कि वह खामशक्ति पण्डित तो आएगा ही उसे अपने वश में रखना ठीक होगा। यदि प्रयोग घातक हो तो उसकी प्रतिक्रिया शक्ति भी हमारे पास तैयार रहना आवश्यक हैं।
चाम की बातें मरियाने के दिल में काँटे की तरह चुभने लगीं। उसमें कितनी भी राजकीय प्रज्ञा हो, कितनी भी जानकारी हो, फिर भी उसकी शंका में असम्भवता उसे महसूस नहीं हो रही थी। युद्धक्षेत्र से हर हफ्ते पखवारे एक बार राजधानी को खबर भेजते रहने का पहले से रिवाज बन गया था। ऐसी हालत में यहाँ से भेजकर गुप्तचर खबर लेने की कोशिश करने के माने ही गलतफहमी का कारण बन सकता आजकल तो महाराज कोई आदेश - सन्देश नहीं देते। वे अपने को निमित्त मात्र के महाराज मानते और सबकुछ के लिए युवराज पर ही जिम्मेदारी छोड़ते हैं। उनका यह विश्वास है कि युवराज जो भी काम करते हैं, खूब सोच-समझकर करते हैं इसीलिए इसमें दस्तदाजी करना ठीक नहीं।
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प्रधान गंगराज बड़े होशियार हैं। वे कोई काम अपने जिम्मे नहीं लेते। अपनी बहिन और उसकी बच्चियों का हित चाहने पर भी वे उसके लिए अपने पद का उपयोग नहीं करते, उदासीन ही रहते हैं। यों तो वे निष्ठावान राजभक्त हैं। जो भी हो, इस विषय में बात करने मरियाने प्रधान गंगराज के घर गया। उसे इन बातों के बारे में सोच-विचार कर निर्णय में एक सप्ताह से भी अधिक लगा।
१६. पट्टादेवी शान्तला