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मालूम हुआ कि तुम बहुत खुश हो। तुम्हारी उस खुशी का स्वरूप क्या है, बता सकोगे?"
__ "क्या बताऊँ, गुरुवर्य, हमारे राजकुमार इस छोटी हेग्गड़ती अम्माजी का पाणिग्रहण कर सकें, ऐसी कृपा करो देवि, यह मेरी प्रार्थना थी भगवती तारा से । यही प्रार्थना करता हुआ मैं अन्दर आया तो देखा कि देवी ने मेरी प्रार्थना मान ली जिसके फलस्वरूप दोनों बच्चों को दोनों ओर बैठाकर अपने वरदहस्त बच्चों पर रखे
आशीर्वाद दे रही हैं महासाध्वीमणि अक्काजी। इससे बढ़कर मेरे लिए आनन्द का विषय और क्या हो सकता है?" रेविमय्या ने बताया। क्षण-भर बुद्धरक्खित ने रेविमय्या को देखा।
"क्यों गुरुवर्य , नर पर इच्छा गलत है: समय्या ने पूछा।
बुद्धरविखत ने कोई जवाब नहीं दिया, उनका चेहरा खिल उठा । कहाँ-से-कहाँ का यह रिश्ता, उसे चाहनेवाला कौन! विचित्र, मानव रीति ही विचित्र है। इन विचारों में खोये भिक्षु ने इतना ही कहा, "बहुत अच्छा।"
बुद्धिरक्खित को प्रग्याम कर रेविपय्या जल्दी-जल्दी निकला क्योंकि बाहर वाहन कतार बाँधे चलने की तैयारी में थे। अन्दर पहुंचते ही बुद्धरखित ने रेविमय्या के विचारों का निवेदन नागियक्का से किया।"राजकुमार भाग्यवान होगा तो शान्तला का पाणिग्रहण करेगा। युवरानी को पद का अहंकार नहीं, इसलिए ऐसा भी हो सकता है। दोनों बच्चे बड़े बुद्धिमान हैं। मैंने आशीष दिया है कि दोनों सुखी हों यद्यपि रेविमय्या ने जो बात कही वह मेरे मन में नहीं थी।"नापियक्का ने कहा। बात यहीं तक रही।
सिंगिमय्या के नेतृत्व में बिट्टिदेव, शान्तला और उदयादित्य का सैनिक-शिक्षण यथावत् चल रहा था। उदयादित्य उप्र में छोटा होने पर भी तलवार चलाने की कला में बहुत चतुर था। राजवंश का रक्त उसको धमनियों में प्रवाहित हो रहा था। बड़े भाई और अपने से उम्र में कुछ बड़ी शान्तला को तलवार चलाने का अभ्यास करते देख उसमें भी यह सीखने की इच्छा बढ़ी थी।
एक दिन शान्तला और बिट्टिदेव के बीच बातों-ही-बातों में स्पर्धा छिड़ गयी। यह देखकर सिंगिमय्या ने कहा, "बेहतर है, आप दोनों आमने-सामने हो जाओ।"
बिट्टिदेव तुरन्त बोला, "न, न, यह कैसे हो सकता है? मैं एक स्त्री के साथ स्पर्धा नहीं करूँगा। इसके अलावा, वह उम्र में मुझसे छोटी है। चाहे तो उदय और शान्तला परस्पर आमने-सामने हो जाएँ। वह जोड़ी शायद ठीक भी रहेगी।" ___ "उस हालत में भी राजकुमार उदय पुरुष ही हैं, इसके अलावा, वे मुझसे छोटे भी हैं।" शान्तला ने उत्तर दिया।
पट्टमहादेवी शान्तला :: 14