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द्रष्टव्य थी।
"माँ, मैं जिस वंश में जन्मा हूँ उस वंश की कीर्ति को प्रकाशित करूँगा, उसका कलंक कभी न बनूँगा। भैर्य के साथ आऊँगा। प्रभुजी का और आपका आशीर्वाद हो तो मैं सारा विश्व जीत सकता हूँ।" कहते हुए उसने भाव-विभोर होकर माता- 1 -पिता के चरणों पर सिर रख साष्टांग प्रणाम किया दुरानी की आँखों से आनन्दानु झरले लगे। कुमार की पीठ पर माता-पिता के हाथ एक साथ लगे और हृदयपूर्वक आशीष की झड़ी लग गयी।
कुमार बल्लाल उठ खड़ा हुआ ।
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'अच्छा, अप्पाजी, अपने गुरुजी को यह सब बताकर तुम बुद्ध रंग में प्रवेश के लिए तैयार हो जाओ। तुम्हें जो कुछ चाहिए वह डाकरस और बैजरस से पूछकर तैयार कर लो। " घण्टी बजायी। बोम्मले ने किवाड़ खोला। बल्लाल बाहर आया। फिर किवाड़ बन्द हुआ।
"प्रभु ऐसे विषयों पर पहले मुझसे विचार-विनिमय करते थे, अबकी बार एकबारगी निर्णय कर लिया है, इसमें कोई खास बात होगी। क्या मैं जान सकती हूँ?" "खास बात कोई नहीं। इसका कारण और उद्देश्य मैंने बहुत हद तक अप्पाजी के सामने ही बता दिया है। रेविमय्या ने अप्पाजी के विचारों के सम्बन्ध में सब बातें कही थीं, बलिपुर के हेग्गड़ेजी से सम्बद्ध उसके विचारों के बारे में।"
"प्रभु के आने से पहले वह मुझसे भी इसी विषय पर चर्चा कर रहा था । "
" हम कितना भी समझाएँ उसका मन एक निर्णय पर नहीं पहुँच सकता। यहाँ रहने पर ये ही विचार उसके दिमाग में कीड़े की तरह घुसकर उसे खोखला बनाते रहेंगे। युद्ध - रंग में इस चिन्ता के लिए समय नहीं मिलेगा। वहाँ इन बातों से वह दूर रहेगा। समय देखकर उसे वस्तुस्थिति से परिचित कराना चाहिए जिसे वह मन से मान जाए । इसीलिए उसे साथ ले जाने का निश्चय किया है। ठीक है न?"
"
"ठीक है । परन्तु...'
" इसमें परन्तु क्या ?"
"प्रभुजी अपने इस निर्णय पर पुन: विचार नहीं कर सकेंगे ?"
"हमें युवरानी के हृदय के भय का परिचय है। कुमार को किसी तरह की तकलीफ न हो ऐसी व्यवस्था की जाएगी। उसकी शारीरिक दुर्बलता को दृष्टि में रखकर आप बोल रही हैं। पिता होकर मैं भी इससे परिचित हो गया हूँ, इसीलिए आप मुझपर विश्वास कर सकती हैं। हाँ, मेरे ऐसा निर्णय करने का एक कारण और भी है।'
कहकर प्रभु चुप हो गये। युवरानी एचलदेवी ने कुतूहल- भरी दृष्टि से बह कारण जानने को प्रभु की ओर देखा ।
'बलिपुर में अगले महीने भगवती तास का रथोत्सव होनेवाला हैं। हेग्गड़े ने
3.30 :: पट्टमहादेवी शान्तला