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हम सबको आमन्त्रण दिया है। हम सभी को वहाँ जाना चाहिए। इस युद्ध के कारण हम नहीं जा पाएँगे, पर आप सादर हो जाना ही पदिनारे में विका अप्पाजी को बलिपुर भेजना अच्छा नहीं और दोरसमुद्र भेजने में अच्छे के बदले बुराई के ही अधिक होने की सम्भावना है, यह तुम भी जानती हो। इसलिए अप्पाजी हमारे साथ युद्ध-शिविर में रहे। इसमें उसे थोड़ा-बहुत अनुभव भी हो जाएगा, और मन को काबू रखने का अवकाश भी मिलेगा। हमने यह निर्णय इसीलिए किया है। हम और अप्पाजी युद्ध-शिविर में तथा युवरानी, छोटे अप्पाजी, उदय, रेविमय्या और नागचन्द्र बलिपुर में रहें। हो सकता है न?"
___ एचलदेवी ने अनुभव किया कि सभी बातों पर सभी पहलओं से विचार करके ही यह निर्णय लिया गया है। उन्होंने अपनी सम्मति इशारे से जता दी।
"तुम्हारी यात्रा की जानकारी अभी किसी को नहीं होनी चाहिए । यह हमें, तुम्हें और रेविमय्या को ही मालूम है। छोटे अप्पाजी को भी नहीं मालूम होना चाहिए। हम युद्ध-यात्रा पर चल देंगे, उसके बाद आप लोगों के बलिपुर जाने की व्यवस्था रेविमय्या करेगा। यहाँ के पर्यवेक्षण के लिए चिण्णम दण्डनायक यहीं रहेंगे। डाकरस भी हमारे साथ जाएँगे। आज ही महासन्निधान को हमारी युद्ध-यात्रा के बारे में पत्र भेज दिया जाएगा। आप लोगों की यात्रा के बारे में पत्र बाद में भेजा जाएगा।"
"प्रभु युद्धक्षेत्र में हों और हम रथोत्सव के लिए यात्रा करें?"
"वहाँ रहने-भर में कौन-सी बाधा होगी? रथोत्सव तो निमित्त मात्र है, प्रधान है आप लोगों का बलिपुर जाना। समझ गर्यो ?"
"जैसी आज्ञा।" युवराज ऐयंग प्रभु खड़े हो गये लेकिन एचलदेवी ने घण्टी नहीं बजायी।
"क्यों, और कुछ कहना है क्या?14
"अहंन्, मेरे सौभाग्य को बनाये रखने का आग्रह करो।" कहती हुई एचलदेवी ने उनके पैरों पर सिर रखकर एक लम्बी साँस ली।
"उठो, जिननाथ की कृपा से तुम्हारे सौभाग्य की हानि कभी नहीं होगी। भगवान् जिमनाथ तुम्हारी प्रार्थना मानेंगे।" कहते हुए एचलदेवी की भुजा पकड़कर उठाया। युवरानी के मुख पर एक समाधान झलक पड़ा। उसने घण्टी बजायी। बोम्मले ने द्वार खोला। प्रभु ने विदा ली।
एऐयंग प्रभु ने डाकरस दण्डनायक, कुमार बल्लाल और बजरस के साथ यादवुपरी की
पट्टमहादेनी शान्तला :: 13]