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"प्रभु की आज्ञा का पालन करना मेरा कर्तव्य है।" बल्लाल ने कहा। "यही सर्वप्रथम युद्ध है जिसमें तुम हमारे साथ चल रहे हो। बैजरसजी ने कहा
हैं कि तुम्हारा हस्तकौशल बहुत अच्छा है 1 तलवार चलाने में तुम्हारी इतनी कुशलता न होने पर भी धनुर्विद्या में तुमने बड़ी कुशलता पायी है. डाकरस दण्डनायक की यही राय है। इसलिए हमने यह निर्णय किया है। परन्तु तुम्हारी अंगरक्षा के लिए हम बैजरस को ही साथ ले चलेंगे। ठीक है न?"
है?"
"बेजरसजी साथ रहेंगे तो हो सकता है।" युवरानी ने कहा ।
" क्यों, तुम्हारा पुत्र बिना बैजरस्त्र के युद्ध-रंग में नहीं उतर सकेगा, तुम्हें डर
युवरानी ने कहा, "यह तो मैं अप्पाजी के स्वास्थ्य की दृष्टि से कह रही हूँ । जिस दिन प्रभु ने पाणिग्रहण किया उसी दिन से मैं समझती रही हूँ कि मेरे पुत्रों को किसी-न-किसी दिन युद्ध-रंग में उतरना पड़ेगा। छोटे अप्पाजी की बात होती तो मैं कुछ भी नहीं कहती। "
"परन्तु छोटे अप्पाजी को तो हम नहीं ले जा रहे हैं । इसका कारण जानती हैं ?" युवरानी से प्रश्न करके युवराज ने बल्लाल की ओर देखा । कुमार बल्लाल के चेहरे पर कुतूहल उभर आया ।
"प्रभु के मन की बात मुझे कैसे मालूम ?"
"तुम्हारी दृष्टि में छोटे अप्पाजी अधिक होशियार और धीर हैं। फिर भी वह छोटा है। अभी वह इस उम्र का नहीं कि वह युद्ध-रंग में सीधा प्रवेश कर सके। इसके अलावा वह अभी-अभी उपनीत हुआ है।"
"अप्पाजी को न ले जाएँ तो क्या नुकसान है ?"
"शुद्ध हमेशा नहीं होते। अप्पाजी कल सिंहासन पर बैठनेवाला है। उसे युद्ध का अनुभव होना आवश्यक हैं। वह मूल तत्त्व है। यदि अब मौका चूक जाए तो नुकसान उसका होगा। छोटे अप्पाजी को भी ऐसा अनुभव मिलना अच्छा होगा। लेकिन उसे फिलहाल न मिलने पर भी नुकसान नहीं होगा। अनुभव प्राप्त कर अपने बड़े भाई को मदद देने के लिए काफी समय उसके सामने हैं। है न ?"
"हम अन्तःपुर में रहती हैं, इतना सब हम नहीं जानतीं। जैसा प्रभु ने कहा. अप्पाजी को इन सब बातों की जानकारी होनी चाहिए। अनुभव के साथ ही तो उसमें विवेचना की शक्ति, तारतम्य और औचित्य का ज्ञान, तुलनात्मक परिशीलन, गुणविमर्शन की शक्ति आदि आवश्यक गुण बढ़ेंगे। इस तरह का ज्ञान उसके लिए आवश्यक है इस बात में दो मत हो ही नहीं सकते।" फिर वे कुमार से बोली, "क्यों अप्पाजी, धीरज के साथ युद्ध-रंग में जाकर लौटोगे ? तुम सर्वप्रथम युद्ध क्षेत्र में पदार्पण कर रहे हो ।" उस समय युवरानी एचलदेवी की वात्सल्यपूरित भावना
पट्टमहादेवी शान्तला : 32