Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 1
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 326
________________ तरफ प्रस्थान किया। दो दिन बाद युवरानी एचलदेवी, कुमार बिट्टिदेव कुमार उदयादित्य कवि नागचन्द्र और रेविमय्या की सवारी बलिपुर की ओर चली। उनकी रक्षा के लिए आरक्षक दल छोटा-सा ही था। इनके आने की पूर्व सूचना देने को गोक के साथ दो सैनिक पहले ही चल पड़े थे। खुद चिण्णम दण्डनायक दोरसमुद्र जाकर वेलापुर की सारी बातें एरेयंग प्रभु की आज्ञा के अनुसार महासन्निधान से निवेदन कर लौटा था और देख-रेख के लिए वेलापुरी ही ठहर गया था। उधर, बिट्टिदेव के उपनयन के पश्चात् बलिपुर लौटने से पूर्व ही मारसिंगय्या प्रभु से वेलापुरी की घटनाओं का निवेदन किया, जल्दी में जो भेंट बलिपुर में वसूल की जा सकी थी वह समर्पित की और भगवती तारा के रथोत्सव के लिए राज-परिवार को आमन्त्रण दिया । यहाँ आने के बाद प्रभु के ठहरने की बड़ी सुन्दर व्यवस्था की। सारा बलिपुर नये साज- 1 - सिंगार से अलंकृत होकर बड़ा ही सुहावना बन गया। सारे रास्ते सुधार दिये गये थे, कहीं ऊबड़-खाबड़ नहीं रहे। बलिपुर के चारों ओर के प्रवेशद्वार इस सुन्दर ढंग से सजाये गये थे कि मानो अतिथियों के स्वागत में विनम्र भाव से खड़े मेजबान वहीं हीं। सभी सैनिकों को नयी वरदी दी गयी जिससे सेना को एक नया रूप मिल गया लगता था । 1 तु और दास प्रभु के निवास की सज-धज के लिए नियुक्त थे। त्यारप्पा और ग्वालिन मल्लि दूध-दही प्राप्त करने के लिए नियोजित थे। धोबिन चेन्नी अब अलग ही व्यक्ति बन गयी थी, हेग्गड़े ने यह परिवर्तन उसमें देखा तो उसे अपने परिवार के कपड़े साफ करने को नियुक्त कर दिया। तो भी, चेन्नी ने प्रभु के वस्त्र स्वच्छ करने का जिम्मा उसी को सौंपने की जिद की मगर हेगड़ेजी ने स्वीकृति नहीं दी । अन्त में, हेरगड़ती के जोर देने पर राजमहल के वस्त्र - भण्डार के संरक्षक अधिकारी के निर्देश के अनुसार काम करने का आदेश देकर प्रभु के वस्त्र स्वच्छ करने का काम दिलाने का भरोसा दिया था | बलिपुर के नागरिकों में विशेष उत्साह झलक रहा था। प्रभु के अपने यहाँ आने की खबर से खुश जनता की खुशी का यह सुनकर ठिकाना न रहा कि वे यहाँ कुछ दिन नहीं, कुछ महीने ठहरेंगे । गोंक से पूर्व सूचना मिलने पर बेचारे हेगड़े के परिवार को निराशा मिश्रित सन्तोष हुआ। निराशा इसलिए कि परिस्थितिवश प्रभु आ न सके। सन्तोष इसलिए कि युवरानी और राजकुमार एक महीना नहीं, प्रभु का आदेश मिलने तक वहीं बलिपुर में ठहरेंगे। इतना ही नहीं, प्रभु का आदेश यह भी था कि लिंगिमय्या को वहीं बुलाकर राजकुमारों के सैनिक शिक्षण की व्यवस्था करें। संयोग से सिंगिमय्या यहीं था। राजपवार के बलिपुर पहुँचने के पहले ही उसने सैनिक शिक्षण की व्यवस्था अपने हनोई मारसिंगय्या से विचार-विनिमय करके उपयुक्त स्थान और अन्य आवश्यक 332 पट्टमहादेवी शान्तला

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