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ने कहा।
"अच्छा जाने दीजिए। आपको तो युद्ध के सिवा दसरी कोई चिन्ता ही नहीं। मुझे स्वप्न दिखाई दिया । दिन के स्वप्न सच निकलते हैं। स्वप्न में चामला बिट्टिदेव का विवाह हुआ।" उसने फिर कहा। अबकी बार स्वप्न की बात पर अधिक बल दिया, चामव्वा ने।
"ठीक, छोड़ो, अत्र इसके सिवा तुम्हारे मन में दूसरी कोई चिन्ता नहीं। चाहे जो हो, हम दोनों भाग्यवान हैं। जो हम चाहते हैं वही हमारे स्वप्न भी होते हैं। चलो, चलो। अन्य अतिथि घर बैठे हैं तब अपने आप मगन रहें, यह ठीक नहीं।" कहता हुआ दण्डनायक हड़बड़ाकर मुंह धोने चला गया।
पूर्व निश्चय के अनुसार फिर सब लोग उनके घर के विशाल प्रांगण में इकट्ठे हुए।
पमाला और चामला का गायन और नर्तन हुआ। उनक गरु उत्कल के नाट्याचार्य महापात्र ने उपस्थित रहकर मदद की। अपने गुरु को अनुपस्थिति में नर्तन नहीं करूंगी, यह बात शान्तला ने पहले ही कह दी थी, इसलिए उमका केवन गायन हुआ।
नाट्याचार्य महापात्र में शान्तला का गायन सुना। उसको 'रि-भूरि प्रशंसा की और कहा, "अम्माजी, तुम्हारी वाणी रेनियों की-सी है। हमारी चामल! कभी-कभी यही घात कहा करती यो, भने विश्वास नहीं किया था। ऐगी- इतनी उम्र में इतनी विद्वत्ता पाना साधारण काम नहीं। इसके लिए महान साधना चाहिए। तुमने साधना द्वार। सिद्धि प्राप्त की है। इतना निखरा हुआ स्वर विन्यास, राग-विस्तार, भाव-प्रचोदन, यह सब एक सम्पूर्ण जीवन्त साधना है, देवांश सम्भूत ही के लिए यह साध्य है । हेगड़ेजी, आप बड़े भाग्यवान हैं । ऐसे कन्या रत्न की भेंट आपने संसार को दी है। कर्णाटक के कला-जगत् के लिए आपकी यह पुत्री एक श्रेष्ठ भेंट है। ऐसी शिष्या पानवाले गुरु भी भाग्यवान हैं।"
शान्तला ने उन्हें दीर्घदण्ड--प्रणाप किया। "बच्ची को आशीर्वाद दोजिए, गुरुर्जा ।'' माचिकच ने कहा।
नाट्याचार्य ने अपने दोनों हाथ उसके सिर पर रखकर कहा, "बेटी, तुम्हारी कीर्ति आनन्द्रार्क स्थावी हो।'
शान्तला उठी। नाट्याचार्य ने कहा, "अम्माजी, मेरी एक विनती है । इस मपय तुम्हारे गुरु यहाँ नहीं हैं. गति-निर्देश के बिना तुम नृत्य नहीं करोगी, ठोक है। परन्तु मुझे तुम्हारा नत्य देखने की इच्छा है। तुम मान लो तो मैं गाऊँगा और तुम नृत्य करोगी। मैं बहुत आभारी हूँगा।"
"सैनि 'भेद है न. गुजो, मैल कैसे बैटगा?''
पामहरदः।। मा-Tili :: 2k1