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को पता नहीं लगता। वह इस तरह कामों में जुट गयी कि जो अतिथि आये थे उन सभी के मनों में दण्डनायिका-ही-दण्डनायिका च्याप गयी, इसमें कोई शक नहीं।
तृतीया की शाम तक करीब-करीब सभी आहूत अतिथि पहुँच चुके थे। परन्तु यह बहुत आश्चर्य की बात थी कि बलिपुर के हेग्गड़े का कहीं पता नहीं था। सबसे पहले जिन लोगों को आना चाहिए था उन्हीं के अब तक न आने से बेचारी युवरानी परेशान थीं। इस बार युवरानी ने दण्डनायक से सीधा प्रश्न नहीं करके उसे चकित किया। अलबत्ता दण्डनायक ने उससे यह प्रश्न उठाया चौथ के दिन दोपहर को। युवरानी और युवराज ने इसपर विचार किया। उनके पास आमन्त्रण पत्र कौन ले गया था, क्यों नहीं पहुंचा, इसका पता लगाकर सही जानकारी देने का युवराज ने आदेश दिया था मरियाने को। वह सोच में पड़ गया, यह हेम्गड़े अगर आ न सकता तो पत्र लिखकर सूचित करता। मन्त्रणालय में तहकीकात से मालूम हुआ कि हेग्गड़े के पास
आमन्त्रण गया ही नहीं। किससे ऐसा हुआ, इसका पता शाम तक लगाने का आदेश मन्त्रणात्नय के कर्मचारियों को दिया मरियाने ने और ऐसे व्यक्ति को उग्र दण्ड की धमकी दी।
पति से यह सब सुनकर चामध्ये वबड़ा गधी, "मम छुम इसपर ध्यान देकर सब देखा-भाला, फिर भी ऐसा क्यों हुआ, इसमें किन्हीं विरोधियों का हाथ है फिर भी यह अपराध हम ही पर लगेगा क्योंकि सब जिम्मेदारी हमपर है। आपके मन्त्रणालय में कोई ऐसे हैं जो आपसे द्वेष-भावना रखते हो?"
अब युवराज को क्या कहकर समझाऊँ, इसी चिन्ता में मरियाने धुल रहा था कि नौकरानी सावला आयी और बोली, "मन्त्रणालय के अधीक्षक दाममय्या मिलने आये हैं, और वे जल्दी में हैं।"
मरियाने बाहर के प्रांगण में आया तो दाममय्या ने कहा, "आदेश के अनुसार सारा शोध किया गया। आपने कितने निमन्त्रण पत्र दिये, इसका हिसाब मैंने पहले गिनकर लिख रखा था। वितरित आमन्त्रण पत्रों की संख्या और मेरा हिसाब दोनों बराबर मेल खाते हैं। इससे लगता है कि बलिपुर के हेग्गड़े का आमन्त्रण पत्र हमारे पास आया ही नहीं।"
"तो क्या उस आमन्त्रण पत्र को मैं निगल गया?"
"मैंने यह नहीं कहा, इतना ही निवेदन किया कि जो आमन्त्रण पत्र मुझे वितरण के लिए दिये गये, उनका ठीक वितरण हुआ है।" __ "तो वह आमन्त्रण पत्र गया कहाँ जिसे बलिपुर के हेगड़े के पास भेजना था?"
"आपके युवराज के पास से आने और पत्रों के मन्त्रालय में पहुँचने के बीच कुछ हो गया हो सकता है।"
314 :: पट्टमहादेवी शान्तला