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'आमन्त्रण पत्रों का पुलिन्दा मेरे साथ ही मेरे घर आया। वहाँ से सीधा मन्त्रणालय में भेज दिया गया। तब आपके कहे अनुसार हमारे ही घर में कुछ गड़बड़ी हो गयी है। यही समझू ? 1
"यह कहनेवाला मैं कौन होता हूँ? मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि जो कार्यभार मुझे सौंपा गया उसे मैंने अपने मातहत कर्मचारियों के द्वारा सम्पन्न किया है। निष्ठा के साथ। उसमें कहीं कोई गलती नहीं हुई, इतना सत्य है ।" ऐसा करेंगे?"
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"युवराज के
"सत्य कहने से डरना क्यों ?"
" आपके कहने के ढंग से ऐसा मालूम होता है कि इसमें आपका ही हाथ होगा 1 और मुझे युवराज से यही विनती करनी होगी । "
"मैंने सत्य कहा है, फिर आपकी मर्जी आज्ञा हो तो मैं चलूँ।" अधीक्षक दाममय्या ने कहा । उसे दुःख हुआ कि सत्य बोलने पर भी उसपर शंका की जा रही हैं ।
मरियानें के होठ फड़क रहे थे। क्रोधपूर्ण दृष्टि डालकर कुछ बोले बिना वह अन्दर आ गया। बाहर के प्रांगण में जो बात हो रही थी उसे दरवाजे की आड़ से चाम सुन चुकी थी, बोली, "देखा, मैंने पहले ही कहा था?"
"तो क्या मुझे तुमपर विश्वास नहीं करना चाहिए।" मरियाने कुछ कठोरता से पेश आया।
41 "क्या कहा ?"
"कुछ और नहीं, मैंने वहीं कहा जो उन्होंने कहा। घर में मिलान करते वक्त तुम भी साथ थीं। इसलिए तुमको भी अब अविश्वास की दृष्टि से देखना पड़ेगा। दाममय्या ने असत्य कहा होता तो उसमें निडर होकर कहने का सामर्थ्य नहीं होता । "
" तो आपका मतलब हैं कि मैं ही उसका कारण हूँ।"
"मैं यह नहीं भी कहूँ पर युवराज के सामने वह ऐसा ही कहेगा। उसका फल क्या निकलेगा ? अब क्या करें।"
"जो आमन्त्रण पत्र ले गया था वह किसी दूसरे काम पर अन्यत्र गया है, ऐसा ही कुछ बहाना बनाकर इस मुश्किल से बचने का प्रयत्न करना होगा। आमन्त्रण पत्र के पहुँचने की सूचना तो मिली है, परन्तु बलिपुरवाले आये क्यों नहीं, इसका पता नहीं लगा है, किसी को भेजने का आदेश हो तो भेज दूंगा, ऐसा उनसे निवेदन करना अच्छा होगा। आमन्त्रण पत्र नहीं गया, यह बताना तो बड़ा खतरनाक है।" चामव्वे ने अपनी बुद्धि का प्रदर्शन किया ।
"ठीक है, अब इस सन्दिग्धता से पार होने के लिए कुछ तो करना ही होगा। परन्तु अब भी यह पता नहीं लग रहा है कि वह आमन्त्रण पत्र कहाँ गया।"
पट्टमहादेवी शान्तला : 315