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"हमें लगता है कि आमन्त्रण पत्र नहीं पहुंचा है।"
"सन्निधान का मत सदा एक-सा रहता है, परिशुद्ध, अकल्मषः बुराई की और जाता ही नहीं। इसीलिए सन्निध्यान को एक ही कारण मालूम होता है कि पत्र पहुंचा नहीं, पहुँचा होता तो वे नाचते-कूदते पहुँच जाते । उनके न आने से सन्निधान को जैसा सूझता है, वही सही मालूम पड़ता है। न आने के दूसरे भी कारण हो सकते हैं।"
___ "इसी पर विचार के लिए आपको बुलाया है। मुझे तो कोई दूसरा कारण सूझता ही नहीं। आपकी सूक्ष्म-बुद्धि को कुछ सझता हो तो बताइए।"
"अगर सन्निधान बुरा न मानें तो अपने विचार स्पष्ट कहूँगी।"
"मंगलकार्य मन में कडुवापन आये बिना ही सम्पन्न हो जाए, इसलिए बात स्पष्ट कह दें।"
"कुछ विस्तार के साथ विचार करना होगा।" "कहिए।"
"हंग्गड़तो की लड़का बहुत होशियार हैं, इसमें दो मत नहीं हो सकते ! राजघराना उदार है, गुणैक-पक्षपाती है, इसलिए सन्निधान ने उसे सराहा। इसी से उनका दिमाग फिर गया होगा।"
"क्या बात कहती हैं? कभी नहीं।"
"इसीलिए सन्निधान ने प्रेम से जो माला देनी चाही उसे इनकार किया उस छोटी ने। उसने जो बहाना बताया उसे भी सन्निधान ने स्वीकार किया। उस वक्त मैंने भी सोचा शायद उसका कहना ठीक होगा। अब अपने बच्चों के गुरु से पूछा तो उन्होंने बताया गुरु-दक्षिणा और प्रेम से दिये पुरस्कार में कोई सम्बन्ध नहीं होता।"
"आपके बच्चों के गरु उत्कल के हैं। वहाँ की और कर्नाटक की परम्पराओं में भिन्नता हो सकती है।"
"बुरा न देखेंगे, न सुनेंगे, न कहेंगे, इस नीति पर चलनेवाली सन्निधान को किसी में बुराई या वक्रता दिखेगी ही नहीं। अच्छा उसे जाने दें। सन्निधान के प्रेमपात्र समझकर उन्हें मैंने अपने यहाँ विदाई का न्योता दिया था न?"
"आपके प्रेम और औदार्य का वर्णन हेग्गड़तीजी ने बहुत सुनाया था।"
"है न? फिर सन्निधान से यही बात किसी और ढंग से कहती तो झिड़कियाँ सुननी पड़ती वह इतना नहीं जानती? चालुक्य सम्राज्ञी को उसने अपने फन्दे में फंसा लिया है। वह हेग्गड़ती कोई साधारण औरत थोड़े ही है। हमने यथाशक्ति पीताम्बर का उपहार दिया तो उसे उसने आँख उठाकर देखा तक नहीं। हाथ में लेकर बगल में सरका दिया। कितना घमण्ड है उसे ?"
"इस तरह के दोषारोपण के लिए आधारभूत कारण भी चाहिए।" "इसके कारण भी अलग चाहिए। वह समझती थी कि अन्तःपुर को अतिथि
घट्टपहादेवी शान्तला :: 314