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नहीं निकली थी। उसे यह पता नहीं था कि दण्डनायिका और युवरानी के बीच जो बातें हुई थी और मन्त्रालय से भी जो खबर मिली थी, उससे युवराज पहले ही परिचित हो चुके हैं। दण्डनायक-दण्डनायिका ने विचार-विनिमय के बाद वह रात शान्ति की नींद में बितायी।
उपनयन के दिन सब अपने-अपने कर्तव्य निषाह रहे थे, परन्त उपनीत होनेवाले वटु बिट्टिदेव में कोई उत्साह नजर नहीं आया। यह बात उसके माँ-बाप से छिपी नहीं थी, यद्यपि वे कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे। बहुत सोचने के बाद संकोच से अन्त में उसने अपनी माँ से पूछा, "बलिपुर के हेगड़ेजी क्यों नहीं आये?"
युवरानी ने थोड़े में ही कह दिया, "आना तो चाहिए था, पता नहीं क्यों नहीं आये।'' इससे अधिक वह बेचारा कर ही क्या सकता था? एक रेविमय्या से पूछा जा सकता था, उससे पूछा, लेकिन उस बेचारे को खुद भी कुछ नहीं मालूम था। बल्कि सबसे अधिक निराश वही था। वह अनुमान भर लगा सका कि इस तरह होने देने में किसी का जबरदस्त हाथ होगा। यह आन्तरिक दुख-भार वह सह नहीं सका तो एक बार युवरानीजी से कह बैठा। परन्तु उसे उनसे कोई समाधान नहीं मिला। उसका दुखड़ा सुनकर बिट्टिदेव को लगा कि रेषिमय्या का कथन सत्य हो सकता है। फिर भी उसने उसे प्रोत्साहित नहीं किया। उसने सोचा कि उसके मां-बाप इस कारण से परिचित होकर भी किसी वजह से कुछ बोल नहीं रहे हैं, अत: मेरा भी इस विषय में मौन रहना ही उचित है।
दण्डनायिका और युवरानी के बीच हुई बातचीत पद्मला ने लगभग उसी ढंग से बल्लाल को सुनायी तो उसने भी सोचा कि उसके भाई के प्रेमभाजन व्यवहार में किस स्तर के हैं, यह उसे दिखा दें। अतएव उसने बिट्टिदेव से एक चुभती-सी बात कही, "तुम्हारी प्यारी शारदा क्या हो गयी? लगता है उसने तुम्हें छोड़ दिया है।"
बिट्टिदेव को सचमुच गुस्सा आया, पर वह बोला कुछ नहीं। भाई की ओर आँखें तरेरकर देखा । बल्लाल ने समझा कि बिट्टदेव का मौन स्वीकृतिसूचक है, कहा, "मुझे पहले से ही यह मालूम था कि वह बड़ी गर्वीली है। परन्तु राजमहल में मेरे विचार को प्रोत्साहन नहीं मिला। कुत्ते को हौदे पर बिठाएँ तो भी वह जूठी पत्तल चाटने का स्वभाव नहीं छोड़ेगा।"
तब भी बिट्टिदेव शुभ अवसर पर मनो-मालिन्य को अवकाश न देने के इरादे से कुछ बोला नहीं।"कम-से-कम अब तुम्हें उधर का व्यामोह छोड़ देना चाहिए।" बल्लाल ठसे छेड़ता ही गया। लेकिन वह फिर भी चुप रहा।
"क्यों भैया, मेरी बात सही नहीं है?'' बल्लाल बिट्टिदेव से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा था।
"जिसे जैसा लगे वह वैसा बोल सकता है, भाई। अब, इस वक्त इसपर किसी
पट्टमहादेवी शान्तला :: 20