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'वह सब बाद में सोचेंगे, फिलहाल तो इस विपदा से होशियारी से बचने की
सोचें ।"
" वह तो होना ही चाहिए।" कहते हुए मरियाने झटपट चल पड़े। दण्डनायिका फाटक तक उसके पीछे गयी, छाती पर हाथ रख झूले पर बैठी, "हे जिननाथ, अब इस सन्दिग्धावस्था से बचाकर किसी तरह उसके पति की आन बनाये रखें।"
नौकरानी सावला आयी और बोली, "राजमहल जाने का समय हो आया है। कौन माड़ी निकालकर रखें।" वह एकदम उन गड़ी हुई और अपने कमरे की ओर भागती हुई बोली, "वाहन तैयार रखो, अभी दो क्षण में आयी।" और वह दो क्षण में ही तैयार होकर राजमहल की तरफ चल पड़ी।
उपनयन के मण्डप, यज्ञवेदी आदि को अलंकृत करना था इसलिए वह उसी तरफ चली। वहीं दोरसमुद्र के प्रसिद्ध रंगवल्ली चित्रकार और दस-बारह वृद्ध सुमंगलियाँ उसकी प्रतीक्षा कर रही थीं। उन्हें वह सलाह दे ही रही थी कि युवरानीजी उधर आयीं । उसने रंगवल्लीकार सुमंगलियों से परिचय कराकर कहाँ किस तरह की रंगोली बने इस पर उनकी सलाह माँगी ।
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युवरानी ने कहा, " वे सब सलाह के अनुसार सजा देगी। आप आइए।" और उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही वे अपने अन्त: पुर को चन्द्रशाला में पहुँचीं। दण्डनायिका के प्रवेश करते ही युवरानी ने बोम्मला से कहा, "तुम दरवाजा बन्द कर बाहर रहो, किसी को अन्दर न आने देना । "
दण्डनायिका बैठी नहीं। उसके दिल की धड़कन तेजी से चल रही थी। युवरानी ने फिर कहा, "क्यों खड़ी हैं, बैठिए।" चामच्चे बैठी। उसके बैठने का ढंग कुछ गैरमामूली लग रहा था।
कुछ देर बाद युवरानी ने कहा, "दण्डनायिकाजी, लोगों के साथ आप सम्पर्क ज्यादा रखती हैं और अनुभवी भी कुछ ज्यादा हैं, इसलिए आपको कुछ आत्मीयता से बात करने के इरादे से बुला लायी।"
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"कहला भेजतीं तो मैं खुद आ जाती, सन्निधान ने आने का कष्ट क्यों किया ?" 'कुछ काम तो हमें स्वयं करना चाहिए। अब यह बात रहने दीजिए। मुख्य विषय पर बात करें। "
"आदेश हो।"
"जिनपर हम पूर्ण विश्वास रखते हैं उन्हीं से दुःखदायक काम हो जाए सो क्या करना चाहिए ?"
"ऐसा करनेवाले आगे अविश्वसनीय होंगे।" चामध्ये ने कह तो दिया लेकिन तुरन्त कुछ सोचकर धीमे स्वर में फिर बोली, "क्या जान सकती हूँ कि ऐसा क्या
316 पट्टमहादेवी शान्तला