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विवेचनापूर्ण ढंग से शिक्षण के फलस्वरूप भविष्य का निर्णय स्वयं कर लेने के स्वातन्त्र्य से वंचित रखना उचित नहीं।"
"ये तीन वर्ष के बाद की बातें जरूर हैं परन्तु छोटे अप्पाजी के सम्बन्ध में मेरी यह राय आपके अन्तरंग के विचार की विरोधी नहीं लगती।"
"राज-परिवार पर निष्ठा रखनेवाले प्रमुख व्यक्ति कल रोक रखने का प्रयत्न भी कर सकते हैं, या ऐसी प्रेरणा देने का प्रयत्न तो कर ही सकते हैं। इसलिए अभी मैं कुछ नहीं कह सकूँगी। अर्हन्तदेव से प्रार्थना है कि मेरी यह मनोभावना सफल हो।"
"दीदी, आपकी आशा अवश्य सफल होगी क्योंकि मेरा मन कहता है यह सम्बन्ध पोयसल वंश की वृद्धि और कीर्ति के लिए एक विशेष संयोग होकर रहेगा। छोटे अप्पाजी ने इस सम्बन्ध में कुछ कहा है?"
"इस दृष्टि से मैंने उससे बात ही नहीं की। अभी से बात करना ठीक नहीं, यह मेरा मन्तव्य है।"
"चाहे जो भी हो, यह तो ऐसा ही होना चाहिए। यह मेरी हार्दिक आशा है।" "इसे सम्पन्न होने में कोई अड़चन पैदा न हो. ही मैं भी चाहती हूँ।" "तो इस बात का निवेदन युवराज और महाराज से करने के बारे में...।"
"अभी नहीं।" युवरानी एचलदेवी ने बीच में ही कहा। फिर कुछ सोचकर बोली, "रेविमय्या ने बलिपुर से लौटने के बाद कुछ कहा होगा?" इस प्रश्न ने इस विचार का रूप बदल दिया।"कुछ नयी बात तो नहीं कहीं न? बिट्टिदेव के समस्त जीवन में शान्तला व्याप्त हो गयी है। उसे कोई भी बहाना, कैसा भी सही, मिले, वह उसके बारे में कोई अच्छी बात कहे बिना न रहेगा। परन्तु अब मैंने ध्यानपूर्वक देखा है, उसने जैसे यह निश्चय कर लिया है कि कहीं भी शान्तला के बारे में एक शब्द भी नहीं कहेगा। मेरा यह प्रस्ताव कार्यरूप में परिणत होगा तब इस संसार में उससे अधिक सन्तोष किसी को नहीं होगा। मेरी निश्चित धारणा है कि इस पोयसल वंश ने अपूर्व मानवों का संग्रह कर रखा है। चालुक्यों के यहाँ भी ऐसे ही लोगों का संग्रह होना चाहिए। इसके लिए हम चुननेवालों में खुले दिल से सबसे मिल सकने की क्षमता होनी चाहिए। अब हमारे साथ आनेवाली इस गालब्बे और लेंक की मदद इस दिशा में मिलेगी, यह आशा है। दीदी, मैं अब नयी मानवी बनकर यहाँ से लौट रही हूँ। हमेशा आपका यह प्रेम बना रहे, मुझे आशीर्वाद दें।" कहती हुई महारानी चन्दलदेवी ने युवरानी एचसदेवी के हाथ अपने हाथों में ले लिये।
"आप हमेशा सुखी ही रहें, यही हमारी आशा-अभिलाषा है। यहाँ प्राप्त यह नया अनुभव चालुक्य प्रजा-जन को मानवीय आदर्शों पर चलने में पथ-प्रदर्शन करे। हम फिर मिल सकें या न मिल सकें परन्तु हममें प्रस्फुटित यह आत्मीयता सदा ऐसी
706 :: पट्टमहादेवी शान्तला