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पोय्सल राजकुमारों के साथ उदयादित्य भी अब शिक्षण पाने लगा था। कवि नागचन्द्र से ज्ञानार्जन, डाकरस दण्डनायक से सैनिक-शिक्षण, हेम्माड़ी अरस की सिफारिश पर दृष्टिभेदी धनुर्धारी की उपाधि से भूषित बैजरस से धनुर्विद्या का शिक्षण बेलापुर के शान्त वातावरण में चल रहा था ।
चल्लाल कुमार को अपने शिक्षण के कार्यक्रमों में मग्न रहने के कारण पाला का स्मरण तक नहीं आया। कल पोय्सल सिंहासन पर बैठनेवाले राजा को उस सिंहासन पर बैठने योग्य शिक्षण भी पाना ही चाहिए। उसे यह पछतावा था कि अब एक साल से जिस श्रद्धा और निष्ठा से ज्ञानार्जन किया वही श्रद्धा और निष्ठा उन गुजरे सालों में भी हुई होती तो कितना अच्छा होता। कितना समय फिजूल गया। एक समय था कि उसके माता -1 1-पिता एवं गुरु भो इसके विषय में बहुत चिन्ताग्रस्त हो गये थे । परन्तु अब वे बहुत खुश थे। इस वजह से वेलापुर के राजमहल में एक नवीन उत्साह झलक रहा था।
यहाँ दोरसमुद्र में महादण्डनायक के घर में निरुत्साह और मनहूसी छा गयी थी । बड़ी रानीजी का कार्यक्रम दोरसमुद्र में महाराज से मिलकर आशीर्वाद लेने तक ही सीमित था। इसके बाद उनकी कल्याण की तरफ यात्रा थी। तबसे जो मनोवेदना शुरू हुई वह क्रमशः बढ़ती गयी। वेलापुर में जो बातचीत हुई थी उसका विस्तार के साथ बयान करने के साथ-साथ दण्डनायक ने अपनी प्यारी पत्नी को खूब झिड़का। पति असमर्थ होता है तो पत्नी पर गुस्सा उतारता है परन्तु भाई अपनी बहिन पर ऐसा नहीं कर सकता, यह सोचकर चामव्वा ने भाई प्रधान गंगराज को अपनी रामकहानी कह सुनायी। उसे मालूम नहीं था कि उसके पतिदेव ने पहले ही सब बातें उनसे कह दी हैं। जो भी हो, भाई से झिड़कियाँ तो नहीं पर उपदेश अवश्य मिला, “अपनी लड़की को महारानी बनाने के लिए तुम्हें तीन-चार वर्ष तपस्या करनी होगी। तब तक तुम्हें मुँह पर ताला लगाकर गम्भीर होकर प्रतीक्षा करनी होगी। तुम औरतों को अपनी होशियारी का प्रदर्शन और प्रयोग का बहिष्कार करना पड़ेगा पूरी तौर से । यदि मेरे कहे अनुसार रहोगी तो तुम्हारी आशा को सफल बनाने में मेरी मदद रहेगी। एक बात और याद रखो । प्रेम से लोगों को जीतना, अधिकार दिखाकर जीतने से आसान है।"
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" आपकी बात मेरे लिए लक्ष्मण रेखा बनकर रहेगी।" भाई को वचन देकर वह घर लौट आयी ।
शिक्षण में जितना उत्साह चामला का था उतना पद्मला का नहीं। इसका कारण न हो, ऐसी बात नहीं थी। पिता जबसे वेलापुर गये उसका यह निश्चित विचार था कि दण्डनायक मुहूर्त निश्चित करके ही लौटेंगे, परन्तु उनके लौटने पर यह बात ही नहीं उठी। स्वयं जानना चाहे तो पूछे भी कैसे। शर्म भी है, जानने की इच्छा भी । बहिन चामला को फुसलाकर जानने की कोशिश भी की, परन्तु सफल नहीं हुई।
310 :: पट्टमहादेश्री शान्तला