________________
मानवीयता के भाव हैं उनसे मैं अत्यधिक प्रभावित हुई हूँ। इस दृष्टि से मेरा मन रत्तीभर ज्यादा भाभी की ओर हो जाए, तो आश्चर्य की बात नहीं। उन्हें भाभी कहते हुए संकोच होता है। आपको दीदी कहते हुए मुझे संकोच नहीं होता। सामाजिक दृष्टि से आप दोनों में बहुत अन्तर है। मैं भी ऐसे ही स्थान पर बैठी हूँ। फिर भी आप दोनों की देखरेख में रहकर आप लोगों की गोद की बच्ची-सी बन गयी हूँ।"
भावना के इस प्रवाह में महारानीजी की एक चिर-संचित अभिलाषा की धारा भी जुड़ने को मचल उठी, "मेरी प्रत्येक इच्छा मेरे पाणिग्रहण करनेवाले चक्रवर्ती पूर्ण करेंगे। किन्तु उनसे भी पूर्ण न हो सकनेवाली एक इच्छा मेरे मन में है, उसे मैं आपसे निवेदन कर रही हूँ। लौकिक व्यवहार की दृष्टि से इस निवेदन का मुझे कोई अधिकार नहीं, लेकिन प्रसंगवशात् जो नया दृष्टिकोण मेरे मन में उत्पन्न हुआ है, आप चाहेंगी तो यह निवेदन मैं युवराज से भी कर दूंगी और महाराज से भी। बात यह है कि आप शान्तला को अपनी दूसरी बहू बना लें।"
"मोरे जी अन्तगली नामापी तयातनी है । पर इसका निर्णय मुझ अकेली के हाथ में नहीं है। प्रभुजी अब विवाह की बात उठाते ही नहीं। महादण्डनायक से भी स्पष्ट कह दिया है।"
"क्या यह कहा कि यह नहीं होगा?"
"वैसा तो नहीं, पर यह कहा है कि अप्पाजी के विवाह की बात पर तीन वर्ष तक विचार ही नहीं करेंगे। ऐसी हालत में छोटे अप्पाजी के विवाह की बात वे सुनेंगे ही नहीं।"
"ऐसा हो तो दण्डनायक की पत्नी की आशा पर तो पानी फिर गया।" "वह उन्हें चुप नहीं रहने देगी।" "इस सम्बन्ध में आपके अपने विचार क्या हैं?" "अपना ही निर्णय करना हो तो मुझे यह स्वीकार्य नहीं।" "क्यों?"
"वह लड़की जिस रीति से बढ़ी है उससे वह महारानी बनने लायक नहीं हो जाती। मगर अप्पाजी का झुकाव उधर हो गया हो तो मेरी स्वतन्त्रता बेमानी है।"
"प्रभुजी की क्या राय है?" "उनका मत मेरे पक्ष से भी ज्यादा कड़वा है।"
"तो मतलब यह है कि आप लोगों का यह मत पीछे चलकर अप्पाजी के लिए मनोवेदना का कारण बनेगा।"
"हमने निश्चय कर लिया है कि हम ऐसा मौका नहीं आने देंगे। मनोवेदना के बिना हो यदि यह सम्बन्ध छूट जाए तो हमें खुशी होगी क्योंकि अपने भविष्य पर
पट्टमहादेवी शान्तला :: 305