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"मैं ही मृदंग बजाऊँगा अम्माजी, मेरो बिनतो मानो।"
"गति-निर्देश सम्पर्क नहीं होगा तो गति का अनुसरण करना कठिन होगा। ऐसे गति-रहित नृत्य करने से तो चुप रहना ही अच्छा है। कला के प्रति उपचार कभी नहीं होना चाहिए, यह मेरे गुरुवर्य का आदेश है। इसलिए मैं आपसे क्षमा-याचना करती
"अच्छा जाने दो, एक गाना और सुना दो। तुम-जैसे स्वर विन्यास करनेवालों के गायन के लिए मदंग बजानेवाले को अपनी प्रतिभा दिखाने का एक बहुत ही अच्छा अवसर है।' नाट्याचार्य ने कहा।
शान्तला ने विस्तार के साथ स्वर-विन्यास कर एक और गाना गाया। नाट्याचार्य के हाथ मृदंग पर चलते, माधुर नाद उत्पन्न करते । मृदंग-नाद की बैखरी और लालित्य को शान्तला ने पहचान लिया तो उसमें एक-सी स्फूर्ति आ गयी। एक-दूसरे का पूरक बनकर स्पर्धा चली। इस स्पर्धा ने बातावरण में एक नयी लहर पैदा कर दी। सब मन्त्रमुग्ध बैठे रहे।
__शान्तला ने फिर प्रणाम किया और कहा, "गुरुजी, आपको उँगलियों के स्पर्श में एक विशेषता है । यह केवल गति-निर्देशन मात्र नहीं, भाव-प्रचोदन भी करता है। यह मेस सौभाग्य है कि ऐसे मृदंग-वादन के साथ गाने का एक योग मिला। आप फुरसत से एक बार हमारे यहाँ आइए । हमारे गुरुजी को आप जैसे विद्वान् का संग बहुत ही अच्छा लगता है।'' शान्तला की विनती थी!
"तुम न भी बुलाओ, मैं एक बार आऊँगा ही। तुम्हारा नृत्य एक बार देखकर ही रहूँगा, अम्माजी।" महापात्र ने कहा।
___ "आप बड़े उदार हैं, गुरुजी। सूर्यदेव के मन्दिर को बालू पर समुद्र के सामने खड़ा करनेवाले शिल्पियों के देश से आये हैं न आप? उस प्रस्तर - शिल्प की भव्यता को देखनेवालों ने बताया है कि यह उत्कल की उदारता का प्रतीक है।" शान्तला ने कहा।
"तो तुम्हें कोणार्क का इतिहास भी मालूप है, अम्माजी?" "हमारे गुरुजी जो जानते हैं वह सब मुझे भी विस्तार से समझा देते हैं।"
"अम्माजी, तुम बड़ी भाग्यशालिनी हो। तुम्हारे दर्शन से मैं भी भाग्यवान् हो गया।" महापात्र ने कहा। उपाहार-पनीय आ गये, नहीं तो उनकी बातचीत और चलती।
हेगड़ेजी के लिए रेशम का एक उपरना, हेगड़ती और उनकी लड़की के लिए रेशमी साड़ियाँ और चोली के लिए कपड़े विदाई में दिये गये । वास्तव में हेग्गड़ती माचिकच्चे को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। दण्डनायक की पत्नी इतमी उदार भी हो सकती है, इसकी कल्पना ही वह नहीं कर सकी थी। उन्होंने कहा,
244 :: पट्टमहादेवो शानला