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होने की जरूरत नहीं। अन्दर का विरोध एक बार फूटकर बाहर व्यक्त हो जाए तो मन पर उसका दवाब कुछ कम हो जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि मेरा काम कुछ हद तक आसान हो गया है। प्रो. में दो बारें में लदीपाली 11 आज सो वारे शाम हो रही है, जल्दी तैयार हो जाएं तो मन्दिर हो आएँगे। वाहन तैयार रखने को कहला भेजती हूँ।'' युवरानी ने कहा।
चन्दलदेवी उठकर अपने निवास चन्द्रशाला गयौं।
मरियाने दाडनायक आया । मन्त्रणागृह में युवराज से गुप्त मन्त्रणा हुई। उस समय उसने दो मण्ड्य बातों का जिक्र किया। पहली बात यह थी कि महाराज इस बात पर अधिक जोर दे रहे हैं कि युवराज सिंहासनारोहण के लिए स्वीकृति दें। अबकी बार यह बात दण्डनायक के हृदयान्तराल से निकली थी. फिर भी युवराज ने अपना पूर्व-सूचित निर्णय न बदला, उसी पर इंटे रहे और कहा, "अब क्या कार हो रहा है. दण्डनायकजी, कामकाज तो चल ही रहे हैं। पिताजी हमारे सभी कार्यों को स्वीकार का आशीर्वाद दे रहे हैं, हम छोटों के लिए इससे बढ़कर सौभाग्य की बात और क्या हो सकती है। वे जोर दे रहे हैं, इससे हमें झुकना नहीं चाहिए। कल दुनिया कह सकती द किं पिता बूढ़े हो गये, इससे उन्हें हटाकर खुद सिंहासन पर बैठ गये। अन्दरूनी बात को दुनियावाले कैसे जानेंगे । मेरी यह इच्छा है कि हमारे इस राज्य की प्रजा सुखी और सम्पन्न होकर शान्तिमय जीवन व्यतीत करे। यह मेरे सिंहासनारूढ़ होने से भी अधिक मुख्य विषय है। इसीलिए दुबारा कभी ऐसी सलाह देने का कष्ट न करें। यह हमारा
अन्तिम निर्णय है।" प्रभु एरेयंग ने इस निर्णय से दण्डनायक की बात पर पूर्णनिगम निगा दिया।
अब अपना बान्धव्य जोड़ने का विषय मरियाने दण्डनायक ने बहुत ही नरमों के साश्य धोरे से उठाया। कहा, ''हमारा पूर्व-पुण्य था कि महामातृश्री कलेयब्बरसीजी ने मुझपर सहोदा-वात्सल्य रखकर किसी कोने में पड़े रहनेवालं मुझको ऊपर उठाया और एक गण्यमान्य व्यक्ति बनाया। एक पद देकर प्रद्विप्नित किया। इस ऋण सं मैं जन्म जन्मान्तर में भी मुक्त नहीं हो सकता। सम्पूर्ण जोवन पोयसल साम्राज्य की उन्नति के ही लिए ममर्पित है, मेरा सारा घराना इसके लिए सर्वस्व का भी त्याग करने को तैयार हैं । राजकुमारों की सैनिक शिक्षा का भार भरे पुत्र पर छोड़कर आपने जो अनुग्रह किया है इससे यह स्पष्ट है कि राज-परिवार का हमारे परिवार पर अत्यधिक विश्वास है। यह विश्वास हमारे लिए एक बरदान की तरह है। इस विश्वास की रक्षा का उत्तरदायित्व हमार घराने का आद्यकर्तव्य है। यह सम्बन्ध और निकट हो जाए, कन्या का पिता होने के कारण, एक भविष्य की आशा लिय बैठा है। कई बार इस विषय
पट्टहादेवा गागना :. 113