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"कल तुम्हारे माँ बाप अगर उल्टा-सीधा कुछ कह दें, तन्त्र भी...'' "वे कुछ भी कहें, मैं आपकी ही रहूंगी।"
"यदि तुम्हारा यही निश्चय हो तो मैं भी आश्वासन दूंगा। कोई कुछ भी कहे. मैं महाराज वनं या न बनें, विवाह तुमसे ही करूँगा।"
"आपके मुंह से यह बात सुनकर मैं जी गयी।" "अब तुम्हें एक वचन देना होगा, पद्या।" "कहिए, महाराज।"
"जैसा तुमने कहा, मैं महाराज बनूंगा और तुम महारानी। इसमें कछ भी सन्देह नहीं। परन्तु हम दोनों को उस स्थान पर बैठना हो तो उसके लिए आवश्यक योग्यता पानी दोगी : मेरे लिए योग्य गुर पिले हैं। अगने लिए ..क अन्के गुरु नियुक्त करने के लिए तुम्हें दण्डनायक से कहना होगा । मेरो महारानी केवल सुन्दरी कहलाए यही पर्याप्त नहीं. पद्मा। वह होशियार, उदार, सन्मागविलम्बी, महिला-शिरोमणिगुणक पक्षपातिमी है, ऐसा लोगों को करना चाहिए, समझना चाहिए। ऐसा बनने की हममें प्रतिज्ञा लेनी होगी। जिसकी पूर्ति में व्यस्त रहने से हम एक-दूसरे से न मिले तो हममें में किसी को अन्यथा नहीं समझना चाहिए। दोनों के एक होने का समय आन तक महनशीन होकर हमें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, अपनी सारी शक्तियों को केन्द्रित कर एकाग्र भाव से ज्ञानार्जन की ओर प्रवृत्त होना होगा। ठीक है न?"
"जो आज्ञा।"
"अब तुमने जा आश्वासन दिया उस पर मुसकुराहट की मुहर भी तो लगनी चाहिए।'' पदाला को आँखें चमक उठीं। एक आत्म-तृप्ति की भावना जागी। चेहरा मुसकान से खिल उठा।
"आओ, बेटो।" बल्लाल ने कहा।
"बन तो काम कैसे चलेगा। अभी काम है। माँ ने कुछ कार्यक्रम भी बना रखा हैं। आप हो ने दीक्षा दी है, मैं प्रतिज्ञाबकहूं, अभी से. इसी क्षण से।"कहती हुई यहाँ से भाग चली। उसके पाजेब की आवाज बल्लाल के कानों में गूंजती रही। उसका हृदयान्तसन स्पन्दित हुआ।
इधर चामन्या ने गांजन के समय बिदिदेव को बगल में बैठी चामला को देखा तो वह यह सोच रही थी कि चामला-बिट्टिदेव की जोड़ी कितनी सुन्दर है। इसी धुन में वह पैर पसारकर लेटी तो आँख लग गयी। उसकी आशा स्वप्न के रूप में उसी नींद में परिणत हुई थी। उसने खटि लेकर निद्रामग्न दण्डनायक को पीठ पर थपथपाकर जगाया और कहा, "दिन के स्वप्न सत्य होते हैं. मैंने अभी-अभी स्वप्न में चामला और बिट्टिदेव का विवाह होते देखा है।"
__"विवाह, कौन-मग विवाह ? मैं तो स्वप्न में युद्ध देख रहा था।" दण्डनायक
१४१ . पदमहादेना गान्तला