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'खाना गले से नहीं उतरा, यह सत्य है, परन्तु बगल में हेगड़े की लड़की बैठी थी, इसलिए नहीं उत्तरा, यह गलत है। न उतरने का कारण यह था कि सामने बैठे होकर भी मेरी ओर एक बार भी आपने नहीं देखा।"
" मेरे न देखने का सम्बन्ध तुम्हारे गले से खाना न उतरने से कैसे हो सकता
है ?"
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'आप मेरी तरह लड़की होते और किसी लड़के से प्रेम करते और वह इसी तरह कतराकर आपके सामने होने पर भी देखी अनदेखी कर देता तो समझते ऐसा क्यों होता है । '
"तुम्हारी ओर न देख पाना मुझे भी खटक रहा था, इसलिए ऐसा हुआ। अब तो सब ठीक हो गया न?"
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'क्या ठीक हो गया, आप आइन्दा दिन में कम-से-कम एक बार दर्शन देंगे, तभी यह ठीक हो सकता है।"
" तो मतलब यह कि रोज मिलते रहें, तभी प्रेम बना रह सकता है। नहीं तो नहीं। यही न ?"
"कैसे कहें, आप कल महाराज बननेवाले हैं। महारानी बनने की इच्छुक अनेक में से किसी अन्य ने आपको अपनी तरफ आकर्षित करके फँसा लिया हो, तो हमें क्या पता लगे ?"
" तो तात्पर्य यह कि जो भी मुझसे प्रेम करती है वह केवल इसलिए कि मैं महाराज बननेवाला हूँ । यही न?"
" इसमें गलती क्या है ?"
"इससे यह स्पष्ट हैं कि प्रेम से भी ज्यादा बलवान् महारानी बनने का स्वार्थं है। ऐसी लड़की पर विश्वास ही कैसे करें।"
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'आप महाराज बनेंगे, यह सत्य है। सचमुच आपसे प्रेम करें तब भी पदवी से प्रेम हो जाएगा। स्त्री के मन को समझे बिना उसकी निन्दा करें तो कोई प्रयोजन सिद्ध होगा ?"
" तो मैं एक बात स्पष्ट पूछ लूँ, पद्मला। अगर मैं महाराज नहीं बनूँ तब भी तुम मुझसे ऐसे ही प्रेम करोगी ?"
"यह निश्चित है कि आप महाराज बनेंगे आपका यह प्रश्न ही अर्थहीन हैं। "
" तुम्हारी भावना ऐसी हो सकती है, परन्तु परिस्थिति अगर बदल जाए और किसी और को सिंहासन पर बैठाने का प्रसंग उत्पन्न हो जाए, ऐसी स्थिति... '
„
"तब भी मैं आपकी ही बनी रहूँगी।" "यह तुम्हारे अन्तःकरण की वाणी हैं ?" "हाँ"
महादेवी शाला: 281