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ठीक उसी वक्त बड़ी रानी चन्दलदेवीजी के आने से यह विचार-शृंखला टूटी। वह तुरन्त उठ खड़ी हुई।
"बुला भेजती तो मैं स्वयं सेवा में पहुँच जाती।" युवरानी ने विनीत होकर कहा। बैठने के लिए आसन दिया।
बड़ी रानी बैठती हुई बोली, "आप बहुत विचार-मग्न लग रही हैं, मेरे आने से बाधा तो नहीं हुई?"
"विचार और चिन्ता ने किसे मुक्त किया है बड़ी रानीजी? एक छोटी चींटी से लेकर चक्रवर्ती तक को एक-न-एक विचार करते ही रहना पड़ता है। अब, क्या आपको चिन्ता नहीं? आपका चेहरा ही बताता है। क्या करें, बड़ी रानी, रेविमय्या के आने तक आपको इसी तरह चिन्तित रहना पड़ेगा।"
"मुझे कोई परेशानी नहीं। मेरे कारण आपकी जिम्मेदारी बढ़ गयी है। यदि बलिपुर से सीधा चली जाती..."
"यहीं से चली जाती तो हमें आपकी आत्मीयता कहाँ मिलती? प्रत्येक क्रिया के पीछे ईश्वर का कोई-न-कोई निर्देश रहता ही है।"
इतने में घण्टी बज उठी। युवरानी और एचलदेवी की बात अभी खतम नहीं हुई कि इतने में एरेयंग प्रभु की आवाज सुन पड़ी, "बड़ी रानीजी भी हैं। अच्छा हुआ। गालब्ने अन्दर जाकर सूचना दे आओ।"
एचलदेवी स्वागत करने के लिए उठकर दरवाजे तक आयी।
एरेयंग प्रभु अन्दर आये, "बड़ी रानीजी, चलिकेनायक अभी कल्याण से लौटा है। सन्निधान ने पत्र भेजा है कि स्वास्थ्य ठीक न होने से वे स्वयं आ नहीं सकते इसका अर्थ यह हुआ कि बड़ी रानी को विदा करने का समय आ गया। हंसी-खुशी से विदा करने के बदले एक आतंक की भावना में जल्दी विदा करने का प्रसंग आया है। जिस वक्त आय चाहें, योग्य संरक्षक दल के साथ भिजवा देंगे। खुद साथ चलने की आज्ञा दें तो भी तैयार हूँ। कल हमारे महादण्डनायक अचानक ही यहाँ आनेवाले हैं। वे यदि पान लेंगे तो उन्हीं को साथ भेज दूंगा।" बिना रुके एक ही साँस में यह सब कहकर उन्होंने अपने ऊपर का बोझ तो उतार दिया, परन्तु यह समाचार सुनने को बड़ी रानीजी और एचलदेवी दोनों तैयार नहीं थीं।
बड़ी रानीजी तो किंकर्तव्य-विमूढ़ होकर ही बैठ गयीं। एकदम ऐसी खबर सुनने पर एचलदेवी कुछ परेशान भी हुई। परन्तु यह सोचकर कि उसके मन पर दूसरी तरह का कोई आघात लगा होगा और इसी वजह से बिना दम लिये एक ही साँस में कह गये हों, यह समझकर, खुद परेशान होने पर भी वह बड़े संयम से बोली, "चिन्ता न करें, बड़ी रानीजी, जितनी जल्दी हो सकेगा, आपको कल्याण पहुँचाने की व्यवस्था करेंगे। अस्वस्थता की खबर आपके पास पहुंचने तक ईश्वर की कृपा से चक्रवर्ती का
पट्टपहादेवी शान्तला :: 293