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की आलोचना कर रहा हूँ, मैं तो उनके भले के लिए ही कुछ निवेदन कर रहा हूँ।"
"इतनी पूर्व-पीठिका की आवश्यकता नहीं, कविजी। मुझे विषय से अवगत करा दें, इतना पर्याप्त है।"
"फिर भी...।" "मतलब पहले किसी और से विचार-विनिमय कर चुके हैं, आप क्या?"
"न, न ऐसा कुछ नहीं। अपनी ही संकोच-प्रवृत्ति के कारण यह पूर्व-पीठिका आवश्यक समझता हूँ। मुख्य विषय दो हैं। दोनों विषयों पर मैं दुविधा में पड़ गया हूँ। पहला बड़े राजकुमार से सम्बन्धित है। वे पढ़ाई की तरफ जितना ध्यान देना चाहिए उतना नहीं देते। उनकी आयु ही ऐसी है, जब मन चंचल होता है। वे अधिक समय दण्डनायकजी के यहाँ व्यतीत करते हैं। यह बात इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि राजकुमार अमुक स्थान में रह सकेंगे, अमुक स्थान में नहीं। वास्तव में मैं दण्डनायकजी का कृतज्ञ हूँ। उन्हीं के प्रयल से मुझे राजघराने के साथ सम्पर्क का सौभाग्य मिला। राजकुमार बल्लाल आवश्यक शक्तियों से सम्पन्न न होकर यदि सिंहासन पर बैठेंगे तो अनुचित होगा, इसलिए यह निवेदन कर रहा हूँ, वह भी एक गुरु की हैसियत से । वास्तव में बड़े राजकुमार बहुत उदार हैं। उनको ग्रहण-शक्ति भी अच्छी है, परन्तु उनमें श्रद्धा की कमी है। मुझे लगता है, वे किसी अन्य आकर्षण से जकड़े हुए हैं जो अच्छी बात नहीं। शारीरिक शक्ति की दुर्बलता के कारण वे युद्धविद्या सीखने में दत्तचित्त नहीं हैं। परन्तु ज्ञानार्जन की ओर भी ध्यान न दें, यह चिन्ता का विषय है।"
"आपने जो कुछ कहा वह मुझे पहले से ज्ञात है। अब प्रभुजी से भी इस विषय पर विचार-विनिमय करूँगी। राजकुमार वास्तव में भाग्यवान हैं जिन्होंने आप जैसा गुरु पाया।"
"सन्निधान भी इस विषय से परिचित हैं, यह जानकर मेरे मन का भार कुछ कम हुआ। दण्डनायक ने भी जोर देकर कहा है कि मैं बड़े राजकुमार की ओर विशेष ध्यान दूं और उन्हें योग्य और प्राज्ञ बनाऊँ। उन्हें इस बात की भी बड़ी चिन्ता है कि राजकुमार युद्ध-विद्या सीखने में शारीरिक दृष्टि से दुर्बल हैं क्योंकि इस विद्या के शिक्षण में वे स्वयं उनके गुरु बनकर प्रयत्न कर रहे हैं।"
"छोटे अम्माजी कैसे हैं?"
"ये ही अगर पहले जन्मते तो पोय्सल राजघराने के लिए बहुत ही अच्छा होता। मुझे इस बात का पता है कि माँ बच्चों में कोई भेदभाव नहीं रखती। परन्तु एक अच्छे गुरु के नाते मैं जोर देकर कहूँगा कि ग्रहण-शक्ति और श्रद्धा की दृष्टि से छोटे राजकुमार छोटे होने पर भी बड़े से भी बड़े हैं।'
माता होकर जब मेरे अपने ही मन में ऐसी भावना उत्पन्न हो गयी है तो इन
पट्टमहादेवी शान्तला :: 255