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'तो ठीक है, वही करेंगे। परन्तु ये सब बातें गुप्त ही रखें। कहीं किसी तरह
के ऊहापोह को मौका न मिले। एकदम गुप्त रखें। **
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'आपकी रानी जीत गयी। उपनयन के सन्दर्भ में एक बार महाराज से मिल लें और उनसे आशीर्वाद ले लें फिर जितनी जल्दी हो, मुहूर्त निश्चित करके निमन्त्रण भिजवाने की व्यवस्था करनी होगी।"
"हाँ, ऐसा ही होगा। बलिपुर के हेगड़े भी वापस जाने की उतावली कर रहे हैं। सहूलियत होने पर जाने को कहा था। अब फिर से उन्हें रोक रखना पड़ेगा।" 'अच्छा गुरुबलयुक्त मुहूर्त शीघ्र मिल जाए तो ठीक है, यदि तीन-चार महीने तक मुहूर्त की प्रतीक्षा करनी पड़े वे अब चले जाएँ और उस पर जाएँ।"
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युवरानी ने सलाह दी।
" तब तक हम यहीं रहें ?"
"न, मुहूर्त निश्चित करके हम बलिपुर चलें और उपनयन संस्कार के लिए यहाँ आ जाएँ। यहाँ से नजदीक ही, तीन कोस की दूरी ही तो है।"
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कुमार विट्टिदेव की जन्मपत्री से ग्रहगतियाँ समझकर ज्योतिषी ने कहा, इस वर्ष ग्रहबल अनुकूल नहीं हैं, अतः उपनयन के योग्य मुहूर्त की प्रतीक्षा करनी होगी। मातृकारक चन्द्र, पितृकारक सूर्य और प्राण- समान गुरु ग्रहों की अनुकूल और बलवान् स्थिति अगले वर्ष में होगी । कालातीत होने पर भी यह कार्य उस समय करना उत्तम होगा, क्योंकि गुरु तब कर्कटक राशि में होगा जो राजकुमार की जन्मराशि और लग्न के लिए अनुकूल स्थान है।"
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"मैं आपकी राय से सहमत हूँ। फिर भी, महाराज की और युवरानी की सलाह, शान्ति - कर्म करके भी अभी सम्पन्न करने की हुई तो आपको तदनुसार ही मुहूर्त निकालना होगा। " प्रभु एरेयंग ने कहा ।
विचार विनिमय के बाद उपनयन आगामी वर्ष के लिए स्थगित हुआ। तय हुआ कि हेग्गड़ेजी सपरिवार बलिपुर जाएँ। युवराज बड़ी रानीजी, युवरानी और राजकुमारों के साथ बलिपुर जाएँ। दोनों के प्रस्थान का निश्चित समय एक ही था, तो भी युवराज के प्रस्थान की सूचना युवराज के अतिरिक्त किसी को नहीं थी ।
बलिपुरवालों के प्रस्थान का समाचार सुनकर चामव्वा बहुत ही आनन्दित हुई। करीब पन्द्रह दिन से राजकुमार उसके यहाँ नहीं आ रहे थे, तो उसने समझा कि अन्त: पुर में किसी षड्यन्त्र की योजना बन रही है। उसके सम्बन्ध में कुछ जानकारी पाने की उसने बहुत कोशिश भी की, मगर वह सफल नहीं हुई। उसकी यह भावना थी कि उसकी लड़कियाँ उस जितनी बुद्धिमती नहीं। अगर कोई दूसरी लड़कियाँ होतीं तो किसी
272 :: पट्टमहादेवी शान्तला