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रानीजी को इसकी खबर देकर युवरानी को भी बताने के उद्देश्य से वह युवरानी के अन्त:पुर गये। उनके आगमन की सूचना देने के लिए घण्टी बजी। युवरानी एचलदेवी अपने स्वामी के स्वागत के लिए द्वार पर पहुँचीं। उन्हें साथ ले जाकर पलंग पर बैठाया, फिर बोली, "कल्याण से अभी तक समाचार न मिलने से आपने रेविमय्या और गोंक को वहाँ भेजा है।"
"यह समाचार यहाँ तक इतनी जल्दी पहुँच गया?" "मुझा है ना किया जैसे ही जागा बया?"
"हाँ, हमारा ध्यान इस बात पर नहीं गया था, यों यह समाचार सुनाने को ही हम इधर आये।"
"उनको क्या आदेश देकर भेजा है?"
"रेनिमय्या यह बताने वाला व्यक्ति नहीं। अवश्य जाने का आग्रह दुहराया है। बड़ी रानीजी ने स्वयं एक पत्र लिख भेजा है, क्या लिखा है, पता नहीं।"
"जैसे कि स्वामी ने बताया था चक्रवती को अब तक आना चाहिए था। है न?
"शायद रास्ते में चक्रवर्ती की सवारी से रेविमय्या की भेंट हो सकती है।"
"कल रात मुझे एक बात सूझी। चक्रवर्तीजी यहाँ पधारने ही वाले हैं। उनके यहाँ रहते छोटे अप्पाजी का उपनयन संस्कार करने का इन्तजाम कर दें तो अच्छा होगा।"
"ठीक ही है। हाँ, एक और बात है। अप्पाजी अब विवाह योग्य भी हो गया है। यह सवाल भी उठा है कि विवाह कब होगा।"
"स्वामी ने क्या जवाब दिया?" "इस विषय में युवरानी की राय लिये बिना हम कोई बात नहीं करेंगे।" "चुप रहेंगे तो प्रश्नकर्ता क्या समझेंगे?"
"उन सबके लिए एक ही उत्तर है, विद्याभ्यास के समाप्त होने के बाद इस पर विचार करेंगे।"
"इसमें मुझसे क्या पूछना। आपका निर्णय बिल्कुल ठीक है।"
"मतलब यह कि अभी अप्पाजी की शादी के विषय में नहीं सोचना चाहिए, यही न?"
"तो अब वह भी हो जाए, यही प्रभुजी का विचार है ?" "हाँ। शादी अभी क्यों नहीं होनी चाहिए?"
"क्यों नहीं होनी चाहिए, यह मैं बताऊँगी। सुनिए, "कहकर नागचन्द्र ने उससे जो कुछ कहा और उसने फिर बल्लाल को बुलाकर उससे जो बातें की, आदि सब विस्तार के साथ कह सुनाया।
2740 :: पट्टमहादेवी शान्तला