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"सवाल नहीं करना, पहले ही कहा है, न? जब तुमने मान लिया तब दूसरों की बात क्यों? तुमने ऐसा क्यों कहा?"
"मुझे ऐसा लगा, इसलिए कहा।" "ऐसा क्यों लगा? किसके कारण ऐसा लगा?" "उस हेम्गड़े की लड़की के आकर बैठने के कारण ऐसा लगा।" "ऐसा क्यों लगा?" "यह तो नहीं कह सकता। उसके बारे में मेरे विचार बहुत अच्छे नहीं।"
"यह कहने की जरूरत नहीं। जब तुमने यह शंका प्रकट की कि उसने चुगली खायी होगी तभी मैंने समझ लिया कि तुम्हारे दिल में उसके प्रति सदभावना नहीं है। उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?"
"कुछ नहीं।"
"कुछ नहीं, तो ऐसी भावना आयी क्यों, तुम्हारे दिल में इस भावना के उत्पन्न होने का कारण होना ही चाहिए। है न?"
"मुझे ऐसा कोई कारण नहीं सूझता।"
"तब तो उसके बारे में जिन लोगों में अच्छी भावना नहीं होगी, ऐसे लोगों की भावना से प्रभावित होकर यह भावना तुम्हारे दिल में अंकुरित हुई होगी।"
"यह भी हो सकता है।" "हममें ऐसा व्यक्ति कौन है?"
"चामचे के घर में हेगड़ती और उनकी लड़की के बारे में अच्छी भावना नहीं।"
"तो क्या उनका अभिमत ही तुम्हारा भी मत है ?" "शायद हो।"
"तो क्या ऐसा मान लें कि उन लोगों ने तुम्हारे दिल में ऐसी भावना पैदा करने का प्रयत्न किया है?"
"इस तरह मेरे मन को परिवर्तित करने का प्रयत्न उन लोगों ने किया है, ऐसा तो नहीं कह सकता मां, उस लड़की को उस दिन आपने जो पुरस्कार दिया उसे उसने स्वीकार नहीं किया, उसी दिन मैंने समझ लिया कि वह गीली है। एक साधारण हेगड़े घराने की लड़की को अपनी प्रतिष्ठा का इतना ख्याल है तो हमें कितना होना चाहिए?"
"तो तुम अपनी प्रतिष्ठा और बड़प्पन दिखाने के लिए महाराज बनोगे? या प्रजा का पालन करने के लिए?"
"उनसे पूछकर तो मैं राजा नहीं बनूंगा, न!" "अप्पाजी, तुम्हारा मन बहुत ही निम्न स्तर तक उतर गया है। उसे सहानुभूति
268 :: पट्टमहादेवी शान्तला