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क्या चीज है सो मालूम नहीं है। उसे अनुकम्पा का भी पता नहीं। गुण-ग्रहण करना उसे मालूम नहीं। औदार्य से वह परिचित नहीं। तुम्हारा मन इसी तरह अगर बढ़ेगा सो तुम वास्तव में सिंहासन पाने के योग्य नहीं हो सकोगे। उस सिंहासन पर बैठने का अधिकार पाने के लिए कम-से-कम अब तो प्रयत्न करना चाहिए। तुम्हारे मन को पूर्वाग्रह की बीमारी लगी है। उसे पहले दूर करो। पीलिया के रोगी को सारी दुनिया पीली-पीली ही लगती है। पहले इस बीमारी से मुक्त हो जाओ। मेरे मन को एक और इस बात का दुःख है कि तुम शारीरिक दुर्बलता के कारण राज्योचित युद्ध नहीं सीख पाते हो, ऐसी हालत में बौद्धिक शक्तियाँ भी मन्द पड़ जाएँ तो क्या होगा, अप्पाजी? तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम्हें एक अच्छे गुरु मिले। ऐसी स्थिति में अक्लपन्दों का भी साथ मिले तो वह ज्ञानार्जन के मार्ग को प्रशस्त बनाएगा। अध्ययन से तुम्हारा मन विशाल होगा। जिसका मनोभाव विशाल नहीं वह उत्तम राजा नहीं बन सकता। क्षमा, सहनशीलता, प्रेम, उदारता आदि गुणों को अपने में आत्मसात् कर लेने की प्रवृत्ति अभी से तुममें होनी चाहिए। कि तुम मेरे पहलौटी के पुत्र हो इसलिए कल तुम महाराज बनोगे। इसलिए मुझे तुम्हें इन सब बातों को समझाना पड़ा। यदि बिट्टिदेव या उदय ऐसा होता तो में इतना चिन्ता नहीं करती। क्योंकि सिंहासन तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को ही मिलेगा, इस कारण जितनी जिम्मेदारी तुम पर है उतनी दूसरों पर नहीं ! इसलिए सोचकर देखो तुम योग्य महाराज बनोगे या केवल प्रतिष्ठित महाराज ही बनोगे।"
"माँ, मुझे इतना सब सोच-विचार करने का मौका ही नहीं मिला था। आज सचमुच आपके इन हित वचनों को सुनने के योग्य मनोभूमि हमारे गुरु ने तैयार की हैं । विद्या से क्या साध्य है, उसकी साधना किसी तरह हो इन बातों पर विस्तार के साथ चर्चा का अवसर आज बड़ी रानी के कारण प्राप्त हुआ। गुरुवर्य ने श्रीयुत् और वाक्श्रीयुत् शब्दों में फरक बताकर उन्हें उदार और असूया-रहित कैसे होना चाहिए, यह सोदाहरण समझाया। आपने जो बातें कहीं वे प्रकारान्तर से उन्होंने भी बतायी हैं। माँ, कल से आपका यह बेटा आपके आशा-भरोसे को कार्यान्वित करने की ओर अधिक श्रद्धा से सक्रिय होगा। इस कार्य में सफल बनें, यही आशीष दीजिए। मैं आपका पुत्र हूँ, मैं गलती करूँ तो उसे ठीक कर योग्य रीति से मुझे चलाने का आपको अधिकार है।" कहते हुए उसने माँ के चरणों में अपना सिर रखा।
बड़े आनन्द से माँ ने उसके नत सिर पर आनन्दाच गिराये, पुत्र को बाँहों में भरकर आलिंगन किया।
बड़ो रानीजी को दिये गये आश्वासन के अनुसार एक सप्ताह तक प्रतीक्षा की गयी। इसके पश्चात् विश्वासपात्र रेविमय्या और गोंक को एरेयंग प्रभु ने कल्याण भेजा। बड़ी
पट्टमहादेवी शासला :: 264