________________
न-किसी बहाने अन्दरूनी बातें समझ लेती।
पद्मला भी चिन्ताक्रान्त हुई। दिन में कम-से-कम एक बार दर्शन देने के लिए आनेवाले राजकुमार यों एकदम आना ही छोड़ दें। यह विरह उससे सहा नहीं गया। दो-तीन बार उनसे मिलने के ही उद्देश्य से किसी बहाने अन्तःपुर में गयी, फिर भी मौका नहीं मिला। इससे वह मन छोटा करके लौटी थी। परन्तु नामला से उसे एक बात मालूम हुई थी कि बड़े राजकुमार आजकल अध्ययन पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। थोड़ा-बहुत घोड़े की सवारी का भी अभ्यास चल रहा है। उसे यह समाचार उस मासूम लड़की शान्तला से मालूम था। शान्तला और चामला सम-वयस्का थीं और एक तरह से स्वभाव भी दोनों का एक-सा था, जिससे उनमें मैत्री अंकुरित हो गयी थी। माचिकब्बे ने शान्तला को कुछ सचेत कर दिया था नहीं तो यह मैत्री-भाव और अधिक गाढ़ा होता । बिट्टिदेव ने उसे बताया था कि चामला की विद्यार्जन में बहुत श्रद्धा है इसी मैत्री के फलस्वरूप उसे बल्लाल के बारे में इतनी जानकारी हुई थी। कल महाराज बननेवाले को किस तरह विद्याओं में परिपूर्णता आनी चाहिए, सब कलाओं में निपुणता प्राप्त करना कितना जरूरी है, यह सब बताकर प्रसंगवशात् शान्तला ने चामला से बल्लाल की काफी प्रशंसा की थी।
"यह बात चामला से पद्मला को और पमला से उसकी माँ चामल्वे को मालूम हुई। इससे चामव्वा के मन में कुतूहल के साथ यह शंका भी उत्पन्न हो गयी कि अन्दर-ही-अन्दर कुछ पक रहा है । तरह-तरह की बातें उसके मन में उठने लगी, महाराज बननेवाले को क्या चाहिए और क्या नहीं, यह बताएगी यह छोटे कुल की बच्ची ? राजकुमार उसके कहे अनुसार चलनेवाला है ? स्पष्ट है कि इसमें हेगड़ती का बहुत बड़ा हाथ है। परन्तु अब तो वे सब चले ही जाएंगे। मेरी बच्ची का यह भाग्य है। उन लोगों के फिर इधर आने से पहले अपनी लड़की के हाथ से राजकुमार के गले में वरमाला न पहनवा दूं तो मैं चामवा नहीं।"
हेगड़ती के विषय में चामब्वे के विचार अच्छे नहीं थे, और इन विचारों को उसने छिपा भी नहीं रखा था। इस बात को हेग्गड़ती भी जानती थी। चामव्वा ने विचार किया कि अबकी बार उसके चले जाने से पहले ऐसा कुछ नाटक रचकर हेगड़ती के मन से इस भावना को जितना बन सके दूर करें।
चामब्बा के इन विचारों के फलस्वरूप उनके जाने के पहले दिन हेगड़े, हेम्गड़तो और उनकी लड़की के लिए एक भारी भोज देने का इन्तजाम किया। खुद दण्डनायक जाकर हेग्गड़े को निमन्त्रण दे आया। चामन्चे ने हेग्गड़ती को निमन्त्रित करते समय एक बड़ा नाटक ही रच डाला!
हेगड़ती पाचिकब्वे ने सहज भाव से कहा, "चामवाजी, इतना सब आदरसत्कार हमारे लिए क्यों, हम तो पत्ते के पीछे छिपकर रहनेवाली कैरियाँ हैं ताकि हमें
पट्टपहादेवी शान्तल्ला :: 2:3