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"हाँ, छोटे अप्पाजी, किस समय किसे किस ढंग से कहाँ रहना पड़ जाए किसे मालूम? वृत्तान्त सुनना चाहो तो शान्तला से सुनो, वह विस्तार से बता सकेगी। " 'कविजी, आपकी बातों से लगता है, महाकवि पम्प के काव्य का प्रभाव आप के मन पर बहुत गहरा पड़ा है। शायद आप उन जैसा बनना चाहते हैं ।"
'इच्छा तो है परन्तु वैसा बनना इतना आसान नहीं ।"
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'आप काल्पना करते हैं ?"
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"हाँ, महादेवीजी, किन्तु महाकवि पम्प, रन्न आदि के स्तर तक पहुंचने में समय लगेगा। महाकवि पम्प ने यह कृतिरत्न पूर्ण किया तब उनको इतना लोकानुभव प्राप्त था कि वे जनता को अपनी जानकारी से उपदेश दे सकें और ज्ञानवान् बनने का मार्ग दरशा सकें, उनकी उम्र भी इस योग्य थी। मुझे भी तो ऐसा लोकानुभव प्राप्त करना होगा। इसके लिए अभी समय है। इस कार्य के लिए उपयुक्त चित्तशुद्धि भी चाहिए। " फिर सुहृदयों का प्रोत्साहन चाहिए। यह सब प्राप्त हो तभी सरस्वती अपनी तृप्ति के योग्य काव्य मुझसे लिखवा सकेगी।"
"ऐसा वक्त शीघ्र आए, यही हमारी इच्छा है। हाँ, फिर ?" चन्दलदेवी की पुराण सुनने की इच्छा अभी पूरी नहीं हुई थी।
" आगे चलकर पुरुदेव अपने पुत्र भरत बाहुबली, वृषभसेन आदि के भी विद्यागुरु बने। उन्हें नाट्यशास्त्र, अर्थशास्त्र, गान्धर्वशास्त्र, चित्रकला, वास्तु-विद्या, कामशास्त्र, सामुद्रिकशास्त्र, आयुर्वेद हस्तितन्त्र, अश्वतन्त्र, रत्न- परीक्षा आदि उन्होंने स्वयं पढ़ाये | महाकवि पम्प विस्तार से बताते हैं कि पिता पुरुदेव से इस स्तर की विद्या सीखने ही के कारण भरत और बाहुबली अतिमानव आदर्श जीवी होकर सिद्धक्षेत्र में विराजमान हैं। महाभारत के युद्ध के पश्चात्, पम्प ने अर्जुन को पट्टाभिषिक्त कराया है, धर्मराज को नहीं। यह बड़े-छोटे का प्रश्न नहीं। श्रेष्ठता और औदार्य का संगम है। कहीं कडुवापन नहीं, कोई परेशानी नहीं, किसी तरह के गर्व अहंकार को भावना नहीं । इसका फल लोकोपकार है। इस कारण पम्प महाकवि के काव्यों का अध्ययन राजवंशियों को अवश्य करना चाहिए।" इसके बाद कवि नागचन्द्र बोले, "अब छन्दोम्बुधि के एक-दो सूत्रों का मनन करेंगे 1"
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चन्दलदेवो ने कहा, 'अब आप जो विषय पढ़ाएँगे उससे मैं बहुत दूर हूँ। इसलिए अब मैं विदा लेती हूँ। बीच में ही उठकर जा रही हूँ अन्यथा नहीं समझें।' "महादेवीजी को जैसा ठीक लगे, करें। मुझे इतना और कहना है कि कन्नड़ के कवियों ने जो भी लिखा है वह इस ढंग से लिखा है कि वह स्त्रियों के लिए भी आवश्यक है । छन्दोम्बुधि का कर्ता नागवमं कवि पम्प महाकवि के थोड़े समय बाद का है। यह शास्त्र कुछ क्लिष्ट है। यह उसने मनोरमा के लिए लिखा था और उसकी टीका भी मनोरमा को समझाते हुए ही लिखी लगती है। इसमें उसकी रसिकता स्पष्ट
262 :: पट्टमहादेवी शान्तला