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"सिखाना मेरे हाथ में है। सीखना शिष्यों के हाथ में है। वे अन्यत्र ध्यान न देकर ज्ञानार्जन की ओर ही ध्यान दें तो यह भी सम्भव है। मेरा मतलब यह है कि उम्र के अनुसार जो आकर्षण होते हैं उनके वशीभूत न होकर इन्हें ज्ञानार्जन की ओर मन लगाना चाहिए। तभी उनकी प्रयत्नशीलता का पूर्ण परिचय मिलेगा।"
"तो क्या आप समझते हैं कि इनमें प्रयत्नशीलता अभी अपूर्ण है ?"
"उन्हें अपने ही अन्तरंग से पूछना होगा कि उनकी प्रयत्नशीलता में श्रद्धा और तादात्म्य है या नहीं।"
"अन्तरंग क्या कहता है, इसे कैसे समझना चाहिए।" बल्लाल ने जिज्ञासा व्यक्त की।
"अध्ययन में मन एकाग्न न हो और अन्य विचार मन में आए तो समझना चाहिए कि अन्तरंग में श्रद्धा कम है। समझ लीजिए, यहाँ अध्यापन चल रहा है लेकिन कहीं से आती मधुर संगीत की ध्वनि पर मन आकर्षित हो रहा है, तो अन्तरंग प्रयत्नशीलता की कमी मानी जाएगी।"
"संगीत का आकर्षण अध्ययन से अधिक लगे तब क्या किया जाए?"शान्तला ने उस जिज्ञासा को आगे बढ़ाया।
"अम्माजी, यह तुलना का विषय नहीं है । जिस समय जिस विषय का अध्ययन चल रहा हो उस समय उसी विषय में एकाग्रता और तादात्म्य हो तो दूसरी कोई अधिक प्रभावशाली शक्ति उसके सामने टिक नहीं सकती। परन्तु पहले से तुलना की भावना उत्पन्न हो गयी हो कि अध्ययन से संगीत ज्यादा रुचिकर है तब तुमने जो प्रश्न उठाया वह उठ खड़ा होता है।"
"मतलब यह है कि अपनी अन्य आशा-आकांक्षाओं को ताक पर रख देना चाहिए और केवल अध्ययन की ओर ध्यान देना चाहिए। यही न?"शान्तला गुरुदेव से कुछ और ही कहलाना चाह रही थी।
"हाँ, उस समय प्रेमियों को भी मन से दूर भगा रखना चाहिए।" शान्तला के सवाल का उत्तर देते समय कवि नागचन्द्र का लक्ष्य बल्लाल था।
"कोई मन में हो, तभी तो उसे दूर भगाया जाएगा।" शान्तला ने कहा।
"ऐसी बातें एक उम्र में मन में उठा करती हैं. अम्माजी । वह गलत नहीं। परन्तु ऐसी बातों की एक सीमा होनी चाहिए। हमें इस सीमा की जानकारी भी होनी चाहिए। वह ज्ञानार्जन में बाधक हो तो फिर मुश्किल है। मेरे एक सहपाठी का विवाह निश्चित हो गया, इसी कारण उसका अध्ययन वहीं समाप्त हो गया।" नागचन्द्र ने कहा।
"सभी आपके उस सहपाठी जैसे होंगे क्या?" बल्लाल ने शंका की।
"हों या न हों, पर ऐसा होना अच्छा नहीं, मैं यही कह रहा हूँ।" नागचन्द्र ने समाधान किया।
26tp:: पट्टमहादेवी शान्तला