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" इतना ही विषय हो तो आगे का पाठ शुरू कर दिया जाए।" बल्लाल ने कहा। "बहुत ठीक।" कहकर कवि नागचन्द्र ने उस पुराण का कुछ अंश, "ब्रह्मियुं सौन्दरियुं मैयिविक दूरान्तरदोले पोडेवट्टु " मधुर स्वर में पढ़कर उसका अर्थ समझाया, यशस्वती देवी की पुत्री ब्राह्मी और सुनन्दा की पुत्री सौन्दरी ने पिता पुरुदेव को प्रणाम किया। कवि ने उनके प्रणाम की विशेषता बताते हुए कहा है कि उसमें सन्तान की अपने पिता के प्रति वात्सल्य की अभिव्यक्ति तो स्वभावतः थी ही, एक गुरु के प्रति उसकी शिष्याओं के सम्मान की आदर्श भावना भी निहित थी, क्योंकि पुरुदेव पितृत्व के साथ गुरुत्व का दायित्व भी निभा रहे थे।
रानी चन्दलदेवी वहाँ एक श्रोता के रूप में बैठी थीं, किन्तु कन्याओं की शिक्षा के प्रसंग ने उनकी जिज्ञासा जगा दी और वे बीच में ही पूछ बैठीं, "तो क्या हम मान सकते हैं कि पुरुदेव के समय स्त्रियों में भी विद्याभ्यास का प्रचलन पर्याप्त था 2" "हाँ, महारानीजी, किन्तु स्त्रियों के लिए विद्याभ्यास की आवश्यकता पर इससे भी अधिक बल महाकवि ने अपने महाकाव्य पम्प - भारतम् में आज से एक सौ पचास वर्ष पूर्व (941 ईस्वी) दिया था, यद्यपि यह दुख का विषय है कि हमने उस महाकवि के हित-बचन पर जितना ध्यान देना चाहिए उतना नहीं दिया। पुरुष भी मानव है, स्त्री भी मानव है। ज्ञान प्राप्त कर मानव को देखा अर्थात् पुरुष और स्त्री मानव के भिन्न-भिन्न रूप हैं तो भी उनका लक्ष्य देवमानवता है जो अभिन हैं।"
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चन्दलदेवी ने प्रश्न किया, "बुजुर्गों को मैंने यह कहते सुना है कि स्त्री को विद्याभ्यास की शायद आवश्यकता नहीं। वह सदा अनुगामिनी, और रक्षणीय हैं। आप इस सम्बन्ध में क्या कहेंगे ?"
"स्त्री पुरुष की अनुगामिनी है, तो पुरुष भी स्त्री का अनुगामी है। इसका अर्थ यह हुआ कि विद्या पुरुष का ही स्वत्व नहीं है। वह मानवमात्र का स्वत्व हैं 1 स्त्री भी मानव हैं। जब तक वह भी पुरुष के बराबर विद्यार्जन- ज्ञानार्जन नहीं करेगी तब तक मानवता अपरिपूर्ण ही रहेगी। वास्तव में हमारे आज के समाज के लिए हमारी उस अम्माजी जैसी स्त्री की आवश्यकता है जो अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग की जीती-जागती मूर्ति हैं। यह मुख - स्तुति नहीं। कन्याओं को विद्याभ्यास कराने में सभी माता-पिता बलिपुर के हेग्गड़े दम्पती की तरह बनें तभी राष्ट्र का कल्याण होगा। पोय्सल साम्राज्य की प्रगति का रहस्य वहीं की रानी की ज्ञान सम्पन्नता और विवेचनशक्ति में निहित है। महाकवि पम्प ने यही कहा है कि पुरुदेव ने अपनी दोनों कन्याओं को स्वयं भाषा, गणित, साहित्य, छन्दशास्त्र, अलंकार आदि समस्त शास्त्रों एवं सारी कलाओं में पारंगत बनाया। वास्तव में मैं प्रभु से इस सम्बन्ध में निवेदन करना चाहता हूँ कि पोय्सल राज्य में विद्यादान की लिंगभेद रहित व्यवस्था की जाए। हमारे भावी प्रभु भी यहाँ उपस्थित
258 :: पट्टमहादेवी शान्तला
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