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"कविजी, आपकी योजना के अनुसार पति और पत्नी एक साथ बैठकर अध्ययन जारी रख सकते हैं?" चन्दलदेवी ने कुछ आगे की बात सामने रखी।
"हाँ, ऐसा जरूर हो सकता है, इतना अवश्य है कि विद्याभ्यास करते समय पुरुष और स्त्री का वैयक्तिक प्रेम आड़े न आने पाए।"
"आपने जो कुछ कहा यह सब महाकवि पम्प ने कहा है क्या?" "हाँ, बल्कि उन्होंने स्त्री के विद्याभ्यास पर खास जोर दिया है।"
"अच्छा, कविजी, बीच में बोलकर काव्य-पाठ में बाधक बनी, इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।' चन्दलदेवी ने कहा।
"काव्य या उसकी कथावस्तु गौण है, उसके अन्तर्गत तत्त्व की जिज्ञासा ही प्रधान वस्तु हैं। इसलिए आपने बीच में बोलकर जो विचार-मन्धन की प्रक्रिया चलायी यह अच्छा ही हुआ। अब फिर प्रस्तुत काव्य की ओर देखें,"नागचन्द्र ने कहा, "अब तक यह कहा गया कि पुरुदेव ने ब्राह्मी और सौन्टरी को क्या-क्य और कैसे सिखाया, सो कवि पम्प के शब्दों में पढ़िए, स्वर-व्यंजन-भेद-भिन्न-शुद्धाक्षरंग लुम अयोगवाह चतुष्कमुम, संयोगाक्षरंगलुपं, ब्रह्मिगें दक्षिण हस्तदोल उपदेशं गद्, सौन्दरिगे गणितम एडद कैयोल् स्थान क्रमादिंद तोरिंदनागल्। अर्थात् स्वर और व्यंजनों का भेद और भिन्न-शुद्धाक्षर तथा चारों अयोगवाह एवं संयुक्ताक्षर दायें हाथ से ब्राह्मी को और गणित का स्थान-भेद बायें हाथ से सौन्दरी को सिखाया।"
"वे दोनों हाथों से लिखते-लिखाते थे?" बिट्टिदेव ने आश्चर्य प्रकर किया।
"हाँ, दोनों हाथों से लिखने का सामर्थ्य और दोनों हाथों से समान भाव से बाँट देना, एक श्रेष्ठ गुण है। महाकवि पम्प भी दोनों हाथों से लिख सकते थे, दोनों हाथ में हथियार लेकर युद्ध करने का सामर्थ्य भी उनमें रहा होगा। बायाँ हाथ आमतौर पर गौण माना जाता है जैसे एक मानव की अपेक्षा दूसरा मानव । इसलिए बायें हाथ का उपयोग गणित-जैसा क्लिष्ट विषय सिखाने में दिखाकर उसका गौरव बढ़ाया होगा महाकवि पम्प ने। साम्राज्य की स्थापना के अभिलाषी राजवंशी यह गौण-मुख्य या ऊँच-नीच का भेद सबसे पहले त्यागते हैं, और इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं ये राजकुमार जो हेग्गड़ेजी की पुत्री के साथ बैठकर अध्ययन कर रहे हैं। बाल्यकाल से सामान्य जनता से मिलजुलकर रहने की आदत डाली जाए, उसके लिए मौका पैदा किया जाए तो मन में विशालता बढ़ती जाती है। पोयसल वंशियों में यह कार्यरूप में परिणत हुई है यह शुभसूचक है।" नागचन्द्र ने कहा।
"कविजी का कथन अक्षरशः सत्य है। मैंने भी आम जनता से मिलते-जुलने से बहुत कुछ सीखा है, बलिपुर के अज्ञातवास की अवधि में।" चन्दलदेवी ने कहा।
"क्या बड़ी रानीजी को अज्ञासवास भी करना पड़ा है?" आश्चर्य से विट्टिदेव ने पूछा।
पट्टमहादेवी शान्तला :: 261