________________
को स्वीकार करें।" कहकर उन्होंने सिर झुकाकर प्रणाम किया।
प्रभु एरेयंग ने मुसकराते हुए स्वीकृति-सूचक अभय-हस्त उठाकर स्वीकृति दी।
हरिहरनायक ने अपने सहयोगियों से विचार-विनिमय करने के बाद अभियुक्तों की ओर देखकर पूछा, "रतन व्यास, मल्लिमय्या, तुम लोगों को कुछ कहना है?"
मल्लिमच्या ने कहा, "कुछ नहीं।"
रतन व्यास ने कहा, "मैं अपने प्रभु का दूत हूँ। मैं यहाँ अपने स्वार्थ से नहीं, अपने प्रभु की आज्ञा का पालन करने आया हूँ। यद्यपि उसमें सफल होने के पूर्व ही सब उलट-पलट हो गया। मेरी आँखें गिद्ध की आँख-जैसी हैं । आपकी बड़ी रानी को मैंने एक बार देखा था सो यहाँ देखते ही पहचान लिया था। परन्तु गालब्बे को मैंने कभी देखा नहीं था, इसलिए धोखा खा गया। आपके युद्ध-शिविर में बड़ी रानी की सेवा में मेरी पत्नी भी रही, लेकिन आपकी यह गालब्बे उससे भी अधिक होशियार है और अधिक धीरज रखती है। उसी के कारण मैं आप लोगों के हाथ में पड़ गया। नहीं तो मैं आप लोगों की पकड़ में कभी न आता । इस गाँव के लोगों को एरेयंग प्रभु का परिचय न हो पर मैं उन्हें जानता हूँ। ग्वाले त्यारप्पा का बयान सत्य है, उसे मेरे रहस्य का पता नहीं था।"
हरिहरनायक ने फिर विचार-विनिमय करके कहा, "बड़ी रानीजी, प्रभवर और बलिपुर के निवासियों, पंचों से विचार-विनिमय कर मैं एक-मत निर्णय देता हूँ कि यह रतन व्यास कुलीन महिलाओं का शील नष्ट करने में लगा रहा, इस कारण यह कठोर कारावास का पात्र है। इसका इससे भी गुरुतर अपराध है चालुक्य बड़ी रानी को उड़ा ले जाने की कोशिश जिसके लिए उसने त्यारप्पा की हत्या का भी आदेश दिया। इन अपराधों के कारण, इस न्यायपीठ की आज्ञा है कि इसे कल सूर्यास्त से पूर्व सूली पर मरने तक चढ़ा दिया जाए । मल्लिमय्या ने उसकी मदद करने के लिए त्यारप्पा को मार डालने का प्रयत्न किया, जिससे इसे चौदह वर्ष का कारावास का दण्ड दिया जाता है। आगे ऐसा न करने की चेतावनी देकर त्यारप्पा को छोड़ दिया जाता है।" निर्णय देकर पंचों ने न्यायपीठ छोड़ा और बड़ी रानीजी तथा युवराज एरेयंग को झुककर प्रणाम किया। अपराधियों को सिपाही ले गये।
लोग संयम से कतार बाँधकर एक-एक कर आये, अपनी तृप्ति भर बड़ी रानी और प्रभु को देखकर आनन्दित हो अपने अपने घर लौटे। बूतुग उस अहाते से बाहर जाता-जाता कहता गया, "चोर, लफंगा, चाण्डाल।"
पता नहीं कब बड़ी रानीजी ने शान्तला को अपने साथ ले अपने आसन की बगल में बैठा लिया था।
रेविमय्या अगर यह सब देखता तो कितना आनन्दित होता ।
240 :: पट्टमहादेवी शान्तला