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और युवराज एरेयंग प्रभु | युवरानी, चामव्वे और हेग्गड़ती पहले ही अन्त: पुर चली गयी थीं । कुमार बल्लाल वहीं गया जहाँ पद्मला थी ।
कुमार बिट्टिदेव, कवि नागचन्द्र, हेग्गड़े मारसिंगय्या और चिण्णम दण्डनायक अन्तःपुर के बाहर प्रांगण में बैठे थे। अन्दर से युवराज आदि बाहर आये तो वे तुरन्त उठ खड़े हुए।
"छोटे अप्पाजी, तुम अम्माजी और बड़ी रानीजी को अन्तःपुर में ले जाओ। अरे, यह रेविमय्या यहीं है। अच्छे हो रेविमय्या ?" एरेयंग प्रभु ने पूछा। रेविमय्या ने झुककर प्रणाम किया। कुछ बोला नहीं। उसकी आँखें शान्तला की ओर थीं।
रेविमय्या का नाम सुनते ही बड़ी रानी की दृष्टि उसकी ओर गयी। शान्तला के दिल में बैठा हुआ रेत्रिमय्या यही है न युवराज और युवरानी का अत्यन्त विश्वासपात्र व्यक्ति यही है न, उस दिन जब शान्तला को मैंने मातृवात्सल्य से प्यार किया तो मेरी आँखों में आनन्द के आँसू देखकर शान्तला ने कहा था, रेविमय्या ने भी ऐसा ही किया था. उसका भी यही हाल था। बड़ी रानी की दृष्टि उस रेविमय्या पर लगी देखकर एरेयंग प्रभु ने कहा, "यह रेविमय्या अत्यन्त विश्वसनीय है ।"
"मुझे सब मालूम है, चलो रेविमय्या । " चन्दलदेवी ने ऐसे कहा मानो वे चिर-परिचित हों। रेविमय्या ने झुककर प्रणाम किया और आगे बढ़ा, उसके पीछे बड़ी रानी चन्दलदेवी, शान्तला और बिट्टिदेव ।
"प्रधानजी और महादण्डनायकजी, अब आप लोग अपने काम पर ध्यान दे 'सकते हैं। चिण्णम दण्डनायक हमारे साथ रहेंगे। ये कौन हैं, इनका हमसे यह नया परिचय है । " कहते हुए प्रभु ने कवि नागचन्द्र की ओर निर्देश किया।
"ये कवि नागचन्द्र हैं, इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर मैंने महाराज से निवेदन किया था, अब ये आस्थान - कवि हैं और राजकुमारों के अध्यापक भी। प्रभु के दर्शन की प्रतीक्षा में है।"
कवि नागचन्द्र ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। प्रभु एरेयंग ने प्रतिनमस्कार किया और कहा, "बहुत खुशी की बात है। अभी कुछ दिन यहीं राजधानी में रहेंगे। फिर यथासमय मिलेंगे ।"
" जो आज्ञा । " कहा कवि नागचन्द्र ने एरेयंग प्रभु और चिण्णम दण्डनायक आगे बढ़े। हेगड़े मारसिंगय्या वह खड़े रहे।
मरियाने ने पूछा, " हेगड़ेजी, आपका डेरा कहाँ है?"
यह सुनकर प्रभु एरेयंग ने मुड़कर कहा, "क्यों हेग्गड़ेजी, वहीं खड़े रह गये ? आइए । " मारसिंगय्या दुविधा से मुक्त होकर सुवराज के साथ चला। प्रधानजी, मरियाने और नागचन्द्र अपने-अपने घर चले गये।
पट्टमहादेवी शान्सला : 249