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हिरिय चलिकेनायक का नाम सुनकर बड़ी रानी को भी कुछ सान्त्वना मिली। फिर भी " बहुत समय तक प्रतीक्षा करते बैठे रहने से बेहतर यह होगा कि किसी और को भी कल्याण भेज दिया जाए। " चन्दलदेवी ने धीरे से सूचित किया।
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"हमने भी यही सोचा है। भी टिके उतावले हो रहे हैं। चक्रवर्तीजी के आने तक ठहरने के लिए उन्हें रोक रखा है। आज गुरुवार है, आगामी गुरुवार तक उधर से कोई खबर न मिली तो हम कल्याण के लिए दूत भेजेंगे। ठीक है न?"
" वही कीजिए। हमेशा काम पर लगे रहने के कारण आपको मेरे मानसिक आतंक की जानकारी शायद न हो पाती, इसलिए यह कहना पड़ा। वैसे भी युद्धभूमि से निकलकर आये मुझे करीब-करीब एक साल हो गया है।"
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'कोई भी बात मेरे मन से ओझल नहीं हुई हैं, बड़ी रानीजी सन्निधान का सान्निध्य जितना हो सके उतना शीघ्र आपको मिलना चाहिए, यह स्वानुभव को सीख है। हमारी युवरानीजी भी इस बात से चिन्तित हैं। आपके मन में जो परेशानी सहज ही उत्पन्न हुई है वह और अधिक दिन न रहे, इसकी व्यवस्था पर ध्यान दे रहा हूँ ।"
"मुझे किसी भी बात की परेशानी न हो, इसकी चिन्ता यहाँ का प्रत्येक व्यक्ति करता है। फिर भी, मन में ऐसी परेशानी ने घर कर लिया है जो केवल वैयक्तिक है, उसमें बाहर का कोई कारण नहीं। आपने मुझे जो आश्वासन दिया उसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ ।"
"बहुत अच्छा।" कहकर एरेयंग प्रभु जाने को उद्यत हुए।
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बड़ी रानीजी ने घण्टी बजायी । गालब्बे परदा हटाकर अन्दर आयी तो बोली, 'युवराज जा रहे हैं।" गालब्बे ने परदा हटाकर रास्ता बनाया । एरेयंग प्रभु चले गये, फिर कहा, "शान्तला को बुला लाओ।"
"वे पाठशाला गयी हैं । "
'पाठशाला ? यहाँ तो उनके गुरु आये नहीं ।"
"राजकुमारों के गुरु जब उन्हें पढ़ाते हैं तब अम्माजी वर्धी रहती हैं।"
'कुमार बिट्टिदेव ने कहा था कि उसके गुरुजी बहुत अच्छा पढ़ाते हैं। हम भी उनका पढ़ना- पढ़ाना देखें, तो कैसा रहेगा ?"
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'मुझे यहाँ की रीत नहीं मालूम।" गालब्बे ने उत्तर दिया।
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'चलो, युवरानीजी से ही पूछ लें।"
अन्तःपुर में चामध्ये और हेग्गड़ती माचिकच्चे बड़ी रानी को आया देखकर युवरानी एचलदेवी उठ खड़ी हुई और बोली, " महारानी सूचना देतीं तो मैं खुद हाजिर होती।"
"मैं खुद आ गयी तो क्या मैं घिस जाऊँगी । गालब्बे ने बताया कि राजकुमारों
पट्टमहादेवी शान्तला :: 251