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चामव्वे की स्थिति ऐसी हुई थी जैसी परिपक्व गर्भ का पात होने पर किसी स्त्री की होती है। अपनी बदकिस्मती और निःसहायता को याद कर अपने ही ऊपर उसे गुस्सा आ रहा था। अपनी बुद्धिमत्ता और फुर्तीलेपन से चालुक्य बड़ी रानी को सन्तुष्ट कर मैं उनकी समधिन बन हो जाऊँगी, उसकी कल्पना का यह महल मोम की तरह गल
गया।
इस सारी निराशा का कारण उसने हेग्गड़ती और उसकी बेटी को ठहराया और उनको जी भरकर शाप दिया। यह हेग्टती दोरसमुद पर हमला करने चली है। बे युवराज के औदार्य का फायदा उठा रही हैं। अपनी लड़की को आगे करके अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने की कोशिश कर रही है। देखने को बड़ी विनीत लगती हैं, पर हैं धूर्त । अबकी बार इसकी ठीक से दवा न करूँ तो मैं चामव्वा नहीं। चामले ने यही पूर्वाग्रह रात में दण्डनायक के दिमाग में भर दिया।
दण्डनायक का मन पहले ही दुखी था, क्योंकि आज महाराज ने ऊपरी स्तरवालों के मनोवैशालय के कारण जो ऊपर उठे थे वे अपने अधीन रहनेवालों को गौण मानते हैं, यह बात उसी को दृष्टि में रखकर कही थी। चामव्वा की बातों ने उन्हें और भी चिन्तित कर दिया। बोले, "हाँ, यह निश्चित बात है, उस हेग्गड़े के परिवार ने युवराज के मन पर काफी प्रभाव डाला है। युवराज की सम्मति के बिना हमारा काम नहीं बनता। इसलिए हमें ऐसा कोई काम अब नहीं करना चाहिए जो युवरानी और युवराज को अप्रिय लगे। हमें उन्हें खुश रखकर ही अपना काम साधना चाहिए। पहले शादीहो जाए, बाद में हम अपने हाथ जमा सकेंगे। उस हेगड़े के परिवार को हमें आत्मीयों की तरह बरतना चाहिए। इतना ही नहीं, ऐसा लगता है कि चालुक्य बड़ी रानीजी का भी इस परिवार पर विशेष आदर है। इसलिए इस वक्त हमें मक्खन में से बाल निकालना है, समझी। इसके अलावा, मुझे मालूम हुआ है कि कोई हमारे बारे में चुगली कर रहा है महाराज से। आजकल महाराज पहले जैसे खुले दिल से बात नहीं करते, इन चुगलखोरों का पता लगाना चाहिए और ऐसे लोगों को पास नहीं फटकने देना चाहिए। चाहे हमारे मन में कितना ही दर्द रहे, उसे अपने ही मन में रखकर हमें सबके सामने हँसते नजर आना होगा, समझी।"
कल्याण से कोई ख़बर नहीं मिली, इससे बड़ी रानी कुछ चिन्तित हुईं। उन्होंने एरेयंग प्रभु से इस सम्बन्ध में पूछा तो वे बोले, "मुझे भी कुछ पता नहीं लग रहा है, बड़ी रानीजी अब तक जो निश्चित रूप से खबर मिलनी चाहिए थी, मुझे इस बात की सूचना मिली थी कि वे जरूर जल्दी ही आएँगे इसीलिए आपको यहाँ ले आया । परन्तु साथ ले आने के लिए मैंने चलिकेनायक को भेज दिया है, इससे कुछ धीरज है।"
250) : पट्टमहादेवी शान्तला