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आयी। इसका नायक था हेग्गड़े सिंगिमय्या । उसने प्रधान गंगराज को प्रणाम कर कहा, "प्रभु परिवार समेत थोड़ी देर में पहुंच रहे हैं। सूचना देने के लिए उन्होंने मुझे इस सैन्य के साथ भेजा है।"
"तुम कौन हो?" "मैं एक प्रभु सेवक हूँ।"
"सो तो मालूम है। मुझे स्मरण नहीं कि कभी मैंने तुमको देखा है। ऐसी खबर पहुँचानी हो तो विश्वासपात्र व्यक्तियों को ही भेजा जाता है। मैं महा दण्डनायक हूँ। मुझे तुम्हारा परिचय होना जरूरी है, इसलिए पूछा।"
"मेरा नाम हेगड़े सिंगिमय्या है। इस धारानगर के युद्ध के प्रसंग में मैं प्रभु कृपा का पात्र बना। अत: मुझे गुल्म नायक के काम पर नियोजित किया है।"
"किस घराने के हो?" "मैं नागवर्मा दण्ड- घराने का." "तुम्हारे पिता?" "बलदेव दण्डनायक।"
"ओह, तब तो मालूम हो गया। वही, वह बलिपुर का हेग्गड़े तुम्हारा बहनोई हैन?"
मरियाने के कहने का ढंग ही सिंगिमय्या को ठीक नहीं लगा, फिर भी उसने गम्भीरता से उत्तर दिया, "जी हाँ।"
कुछ समय तक मौन छाया रहा। मरियाने ने एक बार सिंगिमथ्या को ऐसे देखा कि मानो उसे तौल रहा हो। फिर पूछा, "युवराज के साथ आनेवाले परिवार में कौनकौन हैं?"
"हमारे युवराज, चालुक्य बड़ी रानीजी, और आप्त परिवार", सिंगिमय्या ने कहा। उसे मरियाने और उसकी पत्नी के विषय में अपनी बहिन से काफी परिचय मिल चुका था। अपने बहनोई का नाम तक अपने मुँह से कहने में सिंगिमय्या हिचकिचाया इसलिए उसने सोचा कि दण्डनायक से कोई ऐसी बात न कहे जिससे उसके दिल में चुभन पैदा हो । इसलिए उसने अपने बहिन-बहनोई, भानजी आदि के साथ आने की बात तक नहीं कही। आप्त परिवार कहकर बात खतम कर दी थी।
बलिपुर के हेगड़ेजी की बात उठी तो राजकुमार बिट्टिदेव ने समझ लिया था कि अब जो खबर सुनाने आया है वह शान्तला का मामा है। इसलिए वह भी ध्यान से यह सुनना चाह रहा था कि दण्डनायक के सवाल का उत्तर क्या मिलेगा। यद्यपि खुद पास जाकर पूछना अनुचित समझकर वह चुप रह गया।
प्रधान गंगराज ने, जो अब तक चुपचाप थे, पूछा, "हेम्गड़े मारसिंगय्याजी कुशल हैं न?"
246 :: पट्टमहादेवी शान्तला