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मारसिंगय्या ने कहा, "अच्छा पण्डितजी, वही करेंगे।"
उन्होंने चालुक्य बड़ी रानी और युवराज एरेयंग प्रभु को उसकी स्थिति से परिचित कगकर उसे उनके समक्ष प्रस्तुत किया। उनकी ओर ध्यान न देकर वह हेग्गड़े के पैरों में गिर पड़ा।
हेगड़े मारसिंगय्या ने उसे हाथ पकड़कर उठाया और कहा "तुम्हें हुआ क्या है. इस यो बड़बड़ा हि हो । प्रभु ने और बड़ी रानी ने तुम्हारी बड़ी प्रशंसा की है। तुम्हारे कारण ही उस चोर-चाण्डाल को पकड़ना सम्भव हुआ। तुम्हें उसने जैसा नचाया वैसे नाचे इसी से देशद्रोह टल गया । इसलिए तुमको गौरव प्रदान करने के इरादे से जब उन्होंने तुमको बुलवाए। है तब तुम्हारा ऐसे व्यवहार करना या यों बड़बड़ाना अच्छा
लगता है?"
तुर। हागडेजो के चेहरे को एकटक देखता रहा। उनकी मुसकराहट को देखकर उसके अन्दर की आग कुछ कम हुई। फिर वह कठपुतली की तरह बड़ी रानीजी की ओर मुड़ा। उसे लगा कि प्रसन्न लक्ष्मी स्वयं मूर्तरूप धारण कर मुसकराती हुई उसकी ओर करुगा की धारा बहा रही है। उसने वैसे ही प्रभु की ओर भी देखा।
"हागडुजी, उसे इधर बुल्लाइए।" प्रभु ने कहा।
यंग प्रभु ने हँसते हुए पूछा, "बूतग, जब मैंने एक विश्वासपात्र नौकर की माँग की तो हमारे हेग्गड़जी ने तुम्हारा ही नाम लिया। चलोगे हमार साथ?"
वृतुग नं एकदम किंकर्तव्य-विमूढ़ होकर हेग्गड़े की ओर देखा। "मान लो, बृतुग, तुम्हारी सत्यनिष्ठा उन्हें बहुत पसन्द आयी है।"
"हमारी रक्षा का कारण यह बतुग ही हैं. यह बात प्रमाणित हो गयी, इसलिए यह हमारे साथ कल्याण चल्ने।'' बड़ी रानी चन्दलदेवी नं कज्ञा।
वृत्तुग बड़ी रानी की ओर और ऐयंग प्रभु की ओर बारी-बारी से देखने लगा। फिर बोला, "मालिक, यहीं आपको चरण-सेवा करता रहूँगा, यही मेरे लिए काफी हैं। मुझे यहीं रहने देने की कृपा करने के लिए प्रभु से कहिए, मालिका"
"यहीं रहो, इसके लिए भी हमारी स्वीकृति है। हेग्गडेजी जो काम करते हैं वह भी तो हमारा ही काम है। इसलिए उनकी सेवा हमारो ही सेवा है।'' एरयंग प्रभु ने कहा।
"आज से तुप हेग्गड़े के घर के आदमी हो। जाओ, रायण के साथ काम में नगो।'' मारसिंगय्या ने कहा।
बड़ी रानी ने पूछा, "अब कल्याण के लिए प्रस्थान कब होगा?''
यंग प्रभु ने कहा, ''यात्रा भन्न कल्याण के लिए नहीं, दोरसमुद्र के लिए होगी। वहीं इस धरोहर को महाराज के हार्थों में सौंपेंगे।''
'पान्तु सन्निधान..."
-12 .. 'पद्महादेवा शान्ताना