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"त्यारप्पा, इस पत्र में क्या लिखा है, पढ़ो।' हरिहरनायक ने आदेश दिया। उसने पढ़ा, "मल्लिमय्या, जैसा मैंने तुमसे कहा था, इस पत्र के पहुंचते ही काम कर चुकोगे। ताकि हमारे व्यवहार का कोई चिह्न बाकी न रहे। मैं अब सफलता पाने की स्थिति तक पहुंच चुका हूँ। युद्ध के आरम्भ से हमारा यह व्यापार, अब लग रहा है, सफल हो जाएगा। व्यापार की प्रारम्भिक दशा में ही ग्राहक को संभालकर रखने की व्यवस्था, पाल गस्ती . काश से फिसल गयी । परन्तु अबकी बार ऐसे फिसल जाने का डर नहीं। इसके लिए आवश्यक कार्रवाई मैंने अच्छी तरह से कर ली है। ग्राहक बड़ा भारी है इसलिए वह हाथ से फिसल न जाए, इसके लिए कम-से-कम दो सौ तक की वस्तु हमारे हाथ में होनी चाहिए। उसकी व्यवस्था के साथ, जितनी जल्दी हो सके, तुम आ जाओ। अन्यत्र से भी मँगवाने की व्यवस्था की है मैंने। हमारे व्यवहार की सूचना और को मालूम हो इसके पहले ही अपने ग्राहक को अपने वश में कर लेना चाहिए। अब समय बहुत ही अमूल्य है। वस्तु को भेजते-भिजवाते समय बहुत होशियारी से बरतना पड़ेगा। सब एक साथ पत आना। थोड़ा-थोड़ा कर एकत्रित कर लेना और बाद में सबका इकट्ठा होना बेहतर है। प्रतीक्षा में, रलव्या।"
इसके तुरन्त बाद पुलिस के सिपाहियों ने मल्लिमय्या को वहाँ ला खड़ा किया तब हेग्गड़े ने कहा, "यह मल्लिमय्या है, इसके पास से भी एक पत्र बरामद हुआ जिस पर उसका हस्ताक्षर है।" मल्लिमय्या ने तुरन्त स्वीकार कर लिया। उस पत्र में भी उपर्युक्त विषय लिखा था। उस पढ़वाकर सुनने के बाद, अन्त में हेग्गड़े मारसिंगय्या ने मंच पर आकर पंचों से अनुरोध किया, "अब मुझे अवसर मिले, मैं सब बातों को स्पष्ट करूँगा।" हरिहरनायक ने स्वीकृति दी।
हेग्गड़े ने कहना शुरू किया, "इस अभियुक्त का नाम रतन व्यास है। यह परमारों का गुप्तचर है। शिलाहार राजकुमारी चन्दलदेवीजी ने चालुक्य चक्रवर्ती विक्रमादित्यजी का स्वयंवरण किया। इसी असूया के कारण यह युद्ध आरम्भ हुआ। बड़ी रातीजी को उड़ा ले जाने का मालव के राजा भोजराज ने षड्यन्त्र किया। युद्ध क्षेत्र में उन्हें सुरक्षित रखे रहना असम्भव-सा हो गया। इससे उनको वहाँ से अन्यत्र सुरक्षित रखने की व्यवस्था करनी पड़ी। उन्हें पकड़ने के लिए किये गये प्रयत्नों का यह प्रतिफल है जो हम आज की इस विचारणा-सभा में देख रहे हैं। अब इस समय मैं बलिपुर की सारी प्रजा को एक महान सन्तोषजनक समाचार सुनाना चाहता हूँ कि इस युद्ध में हमारी जीत हुई है। धारानगर जलकर भस्म हो गया। परमार राजा भोजराज अपने को बचाने के लिए भाग गये हैं। उनकी सहायता करनेवाला काश्मीर का राजा हर्ष भी भाग गया है। शायद दोनों काश्मीर गये होंगे। बहुत से प्रमुख शत्रु-योद्धा बन्दी किये जाकर कल्याण के रास्ते में हैं। इस युद्ध में विजय प्राप्त करनेवाले हमारे युवराज यहाँ हमारे सामने उपस्थित हैं।"
सब लोग एक साथ उठकर खड़े हो गये। सबकी आँखें युवराज को देखने के
238 :: पट्टमहादेवी शान्तला