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विनिमय करने लगी।
"भाभी, भैया कुछ कहते हैं तो उसका कोई-न-कोई कारण होता है। हमें उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।"
" तो भाई बहिन ने मिलकर कोई षड्यन्त्र रचा है क्या ?"
"इसमें षड्यन्त्र की क्या बात हैं, भाभी ? भैया की बात का महत्व जैसा आपके लिए है वैसा ही मेरे लिए भी है।"
"उसे स्वीकार करती हो तो तुम अब तक अपने को सजाने के लिए कहने पर इनकार क्यों करती थीं? उस दिन अम्माजी का जन्म दिन था, कम-से-कम उसे खुश करने के लिए ही जेवर और रेशम की जरीदार साड़ी पहनने को कहा तो भी मानी नहीं। आज क्या खास बात हुई ?"
"उस दिन भैया से बातचीत के बाद से मेरी नीति बदल गयी है. भाभी । उनका मन खुली किताब है। उनकी इच्छा के अनुसार चलना हमारा कर्तव्य है।'
"
मेरे पतिदेव के विषय में इस कुलीन स्त्री के भी इतने ऊँचे विचार हैं, ऐसे पति का पाणिग्रहण करनेवाली मैं धन्य हूँ। मैं कितनी बड़ी भाग्यशालिनी हूँ! मन-ही-मन गद्गद होकर माचिक ने कहा, "ठीक है, चलिए हम लोग तैयार हों। और हाँ, जैसा हमारा शृंगार होगा वैसा ही नौकरानी का होगा।" और वे प्रसाधन कक्ष में जा पहुँचीं । 'अब बस भी करो, भुझे गुड़िया बनाकर हो रख दिया तुमने, ननदज। सुमंगला हूँ, थोड़े आभूषणों के बावजूद सुमंगला ही रहूँगी । इससे अधिक प्रसाधन अब मुझे नहीं चाहिए ।" मात्रिकब्जे ने जिद की श्रीदेवी से जो उसे अपने ही हाथों से सजाये जा रही थी ।
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" सौमांगल्य मात्र के लिए ये सब चाहिए ही नहीं, मैं मानती हूँ। माथे पर रोरी, माँग में सिन्दूर, पवित्र दाम्पत्य का संकेत मंगलसूत्र, इतना ही काफी है। परन्तु जब सजावट ही करनी है तब ईश्वर से प्राप्त सौन्दर्य को ऐसा सजाएंगे कि ईश्वर भी इस कृत्रिम श्रृंगार को देखकर चकित हो जाए।" श्रीदेवी ने कहा ।
"यह सब सजावट इतनी ऐसी! न भाभी ! न! मैं तो यह सब पहली बार देख रही हूँ।"
"मुझे सब कुछ मालूम है। चालुक्यों को बड़ी रानीजी को इस तरह की सजावट बहुत प्रिय है। केश शृंगार की विविधता देखनी हो तो वहीं देखनी चाहिए, भाभी । वहाँ अभ्यस्त हो गयी थी, अब सब भूल सा गया है। फिर भी आज उसे प्रयोग में लाऊँगी।"
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हेग्गड़ती के घर की नौकरानी गालब्बे का भी श्रृंगार किया खुद श्रीदेवी ने । बेचारी इस सजावट से सुन्दर तो बन गयी परन्तु इन सबसे अनभ्यस्त होने के कारण उसे कुछ असुविधा हो रही थी। शान्तला की सजावट भी खूब हुई। श्रीदेवी ने भी खुद
पट्टमहादेवी शान्तला : 2003